अमेरिका का इज़राइल को समर्थन : फ़िलिस्तीन संघर्ष के संदर्भ में

अमेरिका का इज़राइल को समर्थन : फ़िलिस्तीन संघर्ष के संदर्भ में

इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच दशकों से चला आ रहा संघर्ष केवल दो भू-भागों या दो समुदायों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया की राजनीति, कूटनीति और शक्ति-संतुलन से जुड़ा हुआ मुद्दा है। इस संघर्ष में सबसे प्रमुख भूमिका अमेरिका की मानी जाती है, जिसने हमेशा से इज़राइल को राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य स्तर पर मज़बूती से समर्थन दिया है। अमेरिका का यह रवैया न केवल मध्य-पूर्व की राजनीति को प्रभावित करता है, बल्कि विश्व शांति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी गहरा असर डालता है।




ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

1948 में इज़राइल के निर्माण के बाद से ही अमेरिका ने उसे अपना रणनीतिक सहयोगी माना। शीतयुद्ध के दौर में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शक्ति-संतुलन की राजनीति में इज़राइल, अमेरिका का “मध्य-पूर्व का प्रहरी” बन गया। अमेरिका ने अरब देशों की बढ़ती ताक़त और सोवियत प्रभाव को रोकने के लिए इज़राइल को निरंतर सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की।




अमेरिका का आर्थिक और सैन्य समर्थन

अमेरिका इज़राइल को अरबों डॉलर की सैन्य सहायता देता है। हथियार, मिसाइल डिफेंस सिस्टम, तकनीकी सहयोग और खुफिया जानकारी—सब कुछ इज़राइल को अमेरिका से मिलता है। “आयरन डोम” जैसे रक्षा तंत्र को अमेरिका की सीधी मदद से विकसित किया गया। यह सहायता केवल सैन्य तक सीमित नहीं है, बल्कि आर्थिक स्तर पर भी अमेरिका इज़राइल को दुनिया के सबसे बड़े सहयोगियों में से एक मानता है।




फ़िलिस्तीन मुद्दे पर अमेरिका की भूमिका

फ़िलिस्तीनियों के लिए अमेरिका का रुख अक्सर पक्षपातपूर्ण माना गया है। संयुक्त राष्ट्र में जब भी फ़िलिस्तीन के पक्ष में कोई प्रस्ताव लाया गया, तो अमेरिका ने या तो उसका विरोध किया या वीटो का प्रयोग किया। इससे फ़िलिस्तीनी नेतृत्व और आम जनता के बीच यह धारणा बनी कि अमेरिका कभी भी उनके अधिकारों का समर्थक नहीं होगा।




कारण : अमेरिका क्यों देता है इज़राइल को समर्थन?

1. रणनीतिक कारण – मध्य-पूर्व में तेल और गैस के भंडार तथा भू-राजनीतिक स्थिति अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है। इज़राइल उसकी स्थायी चौकी की तरह है।


2. राजनीतिक कारण – अमेरिका की आंतरिक राजनीति में यहूदी लॉबी का प्रभाव बेहद गहरा है। चुनावी राजनीति और फंडिंग में इज़राइल समर्थक समूहों का बड़ा योगदान रहता है।


3. धार्मिक और सांस्कृतिक कारण – अमेरिका में बड़ी संख्या में ऐसे समूह हैं जो इज़राइल को “धार्मिक दृष्टि से पवित्र भूमि” मानकर उसका समर्थन करते हैं।


4. सुरक्षा कारण – अमेरिका आतंकवाद और कट्टरपंथ के ख़िलाफ़ इज़राइल को एक मज़बूत साझेदार मानता है।






परिणाम : शांति की राह कठिन

अमेरिका के एकतरफा समर्थन ने फ़िलिस्तीन और इज़राइल के बीच शांति प्रयासों को कई बार विफल किया। हर बार जब फ़िलिस्तीन को न्याय मिलने की संभावना दिखी, अमेरिकी समर्थन ने इज़राइल को और मज़बूत बना दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि हिंसा, बमबारी, और मासूम नागरिकों की मौतें लगातार जारी रहीं।




अंतरराष्ट्रीय आलोचना

यूरोप, एशिया और अफ्रीका के कई देशों ने अमेरिका के इस पक्षपाती रवैये की आलोचना की है। संयुक्त राष्ट्र में बार-बार यह बात उठाई जाती है कि अमेरिका को निष्पक्ष रहकर मध्य-पूर्व में शांति बहाल करने के लिए काम करना चाहिए। लेकिन व्यावहारिक स्थिति यह है कि अमेरिका अपने हितों को प्राथमिकता देता है।



निष्कर्ष

अमेरिका का इज़राइल के प्रति अटूट समर्थन केवल एक कूटनीतिक संबंध नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदारी है। यह समर्थन जहां इज़राइल को शक्ति प्रदान करता है, वहीं फ़िलिस्तीनियों के लिए न्याय और शांति की राह को कठिन बना देता है। दुनिया में शांति तभी स्थापित हो सकती है जब शक्तिशाली देश निष्पक्ष होकर मध्य-पूर्व के लिए समाधान खोजें। अन्यथा यह संघर्ष आने वाले वर्षों में और भी भयानक रूप ले सकता है।

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