सूडान संकट पर गांधीवादी दृष्टिकोण — करुणा, अहिंसा और जवाबदेही का मार्ग
सूडान संकट पर गांधीवादी दृष्टिकोण — करुणा, अहिंसा और जवाबदेही का मार्ग
सूडान के एल-फाशेर और बारा से सुरक्षित मार्ग की तलाश में भटकते निर्दोष नागरिकों की रक्षा के लिए तात्कालिक कदम उठाने की अपील मानवता के लिए एक गंभीर चेतावनी है। आरएसएफ (RSF) और उनके सहयोगी लड़ाकों द्वारा किए जा रहे अत्याचार यह दिखाते हैं कि जब शक्ति का इस्तेमाल नैतिकता से रहित होता है, तो उसका परिणाम केवल विनाश होता है। ऐसे समय में महात्मा गांधी के अहिंसा, सत्य और नैतिक साहस के सिद्धांत आज भी विश्व को एक नई दिशा दे सकते हैं।
1. मानव गरिमा की पुकार
गांधीजी मानते थे कि हर व्यक्ति को शांतिपूर्वक और गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। सूडान में आम नागरिकों पर हो रहे अत्याचार इस मूल मानव अधिकार का घोर उल्लंघन हैं। गांधीजी ने कहा था— “आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देती है।” सूडान जैसे संघर्ष क्षेत्रों में प्रतिशोध और हिंसा का चक्र मानवता को उसकी संवेदना से अंधा बना रहा है।
गांधीवादी दृष्टिकोण में पहला कदम यह होगा कि प्रत्येक नागरिक को केवल पीड़ित नहीं बल्कि मानव परिवार के एक समान सदस्य के रूप में देखा जाए, जिसे बिना किसी भेदभाव के सुरक्षा और करुणा मिलनी चाहिए। प्रभावशाली देशों और संगठनों को राजनीतिक स्वार्थ नहीं, बल्कि मानवीय कर्तव्य के भाव से आगे आना चाहिए।
2. अहिंसा ही एकमात्र स्थायी समाधान
गांधीजी के अनुसार अहिंसा केवल हिंसा का अभाव नहीं है, बल्कि प्रेम, समझ और मेल-मिलाप की सक्रिय शक्ति है। सूडान के संदर्भ में “तात्कालिक कार्रवाई” का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि और अधिक हथियार भेजे जाएं, बल्कि इसका अर्थ होना चाहिए— संवाद, मध्यस्थता और समुदायों के बीच विश्वास निर्माण।
अहिंसा कायरता नहीं, बल्कि साहस का सर्वोच्च रूप है। यह क्रोध को संयम में बदलने की क्षमता है। अतः विश्व समुदाय को ऐसे प्रयासों का समर्थन करना चाहिए जो युद्धविराम, मानवीय सहायता मार्ग और शांति वार्ता को बढ़ावा दें।
3. प्रभावशाली देशों की नैतिक जिम्मेदारी
गांधीजी बार-बार कहते थे कि सच्ची शक्ति नैतिक शक्ति होती है, न कि सैन्य या आर्थिक। जिन देशों के पास प्रभाव है, उनकी जिम्मेदारी है कि वे अपनी ताकत का उपयोग शांति और सेवा के लिए करें, न कि प्रभुत्व के लिए।
गांधीजी का “ट्रस्टीशिप” सिद्धांत यही कहता है कि शक्ति और संपत्ति ईश्वर की देन हैं और हमें उनके “ट्रस्टी” के रूप में समाज की सेवा करनी चाहिए। यदि शक्तिशाली राष्ट्र सूडान के संकट को केवल रणनीतिक दृष्टिकोण से देखेंगे, तो यह फिर से शोषण के उसी चक्र को जन्म देगा। गांधीवादी दृष्टिकोण उन्हें मानवता के रक्षक के रूप में कार्य करने का आह्वान करता है।
4. जवाबदेही और नैतिक कानून
इस अपील में कहा गया है कि “जवाबदेही आवश्यक है।” गांधीजी के अनुसार जवाबदेही केवल कानूनी नहीं बल्कि नैतिक भी है। हिंसा का हर कार्य सम्पूर्ण मानवता के विवेक को कलंकित करता है। जो अत्याचारों के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें न्याय का सामना अवश्य करना चाहिए — लेकिन बदले की भावना से नहीं, बल्कि पश्चाताप और सुधार की भावना से।
गांधीवादी जवाबदेही का अर्थ है सत्य की स्वीकृति, पुनर्मिलन और नैतिक पुनर्जागरण। न्याय को केवल दंड का नहीं, बल्कि उपचार का माध्यम बनना चाहिए।
5. आगे का मार्ग — गांधी के सिद्धांतों से शांति की पुनर्स्थापना
सूडान जैसे संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में गांधीजी के विचार शांति निर्माण का व्यावहारिक मार्ग प्रदान करते हैं:
- अहिंसा (Non-Violence): हर स्तर पर संवाद और शांति प्रयासों को प्राथमिकता दें।
- सर्वोदय (Sarvodaya): हर नीति और कदम का उद्देश्य सबसे कमजोर नागरिकों का कल्याण हो।
- सत्याग्रह (Satyagraha): सच्चाई और नैतिक दबाव के बल पर हिंसा करने वालों को जवाबदेह बनाएं।
- ट्रस्टीशिप (Trusteeship): शक्तिशाली राष्ट्र और संगठन स्वयं को मानवता के “ट्रस्टी” के रूप में देखें, न कि स्वामी के रूप में।
निष्कर्ष
सूडान की त्रासदी हमें यह सिखाती है कि हिंसा और भय से कभी स्थायी शांति नहीं आती। गांधीजी के शब्दों में, “जब प्रेम की शक्ति, शक्ति के प्रति प्रेम पर विजय पा लेगी, तभी दुनिया में सच्ची शांति होगी।”
आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है — करुणा, जवाबदेही और अहिंसा का संगम। यदि दुनिया गांधीजी की इन शिक्षाओं को अपनाती है, तो न केवल सूडान बल्कि हर संघर्षग्रस्त भूमि पर शांति की सुबह उग सकती है।
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