“सत्य का सन्यासी”

“सत्य का सन्यासी”



सत्य की मिट्टी में जन्मा एक बीज था,
जो किसी खेत का नहीं, आत्मा का नीड़ था।
वह बीज बड़ा हुआ, वाणी में बदला,
और शब्दों में प्रेम का सागर बहा।

वो कोई राजा नहीं था, न सैनिक, न मंत्री,
पर उसके नाम से कांप उठी थी साम्राज्य की छतरी।
वो आया हाथ में लाठी लिए,
पर उसके इरादे लोहे से भी कठोर थे।

उसने कहा — “अहिंसा ही धर्म है,”
और यही बन गया उसकी आत्मा का मर्म है।
जहाँ तलवारें चमकती थीं,
वहाँ उसने शब्दों से अंधकार हर लिया।

वो बोलता कम था, सुनता अधिक,
उसके मौन में भी संदेश निकला।
हर प्रार्थना में एक राष्ट्र जागता,
हर उपवास में आत्मा तपती।

चरखा उसकी शक्ति था,
सूत्रों में बुनी स्वतंत्रता थी।
हर धागे में आत्मनिर्भरता का मंत्र,
हर चक्कर में आत्मबल का केंद्र।

उसकी आँखों में करुणा थी,
पर निर्णय में वज्र जैसी दृढ़ता।
वो सत्य के रास्ते चला,
जहाँ काँटे भी फूल बन गए।

जब किसी ने कहा — “हिंसा से स्वतंत्रता मिलेगी,”
उसने कहा — “नहीं, आत्मबल से।
अगर हिंसा से जीत मिलती,
तो मनुष्य आज भी पशु होता।”

वो सादा चलता था,
पर हर कदम इतिहास बनता।
उसका चलना कोई यात्रा नहीं,
वो तो युगों का परिवर्तन था।

साबरमती के तट से उठी वो आवाज़,
जिसने ब्रिटानिया की नींव हिला दी।
दांडी के सागर में नमक नहीं,
क्रांति घुली थी उस दिन।

वो लंगोटी पहने संत था,
पर उसकी सोच सम्राटों से ऊँची।
जिसे दुनिया ने “महात्मा” कहा,
क्योंकि उसने मनुष्यता को देखा।

उसकी आँखों में भारत का सपना था,
जहाँ हर मनुष्य समान हो,
जहाँ जाति का जहर न बहे,
जहाँ स्त्री पुरुष एक समान खड़े हों।

वो कहता था —
“तुम स्वयं वो परिवर्तन बनो,
जो तुम दुनिया में देखना चाहते हो।”
और वही उसका जीवन-सत्य था।

उसने रामराज्य की बात की,
पर धर्म की नहीं, न्याय की की।
उसके राम में करुणा थी,
उसके राम में श्रम की पूजा थी।

जब उसे मारा गया,
वो गिरा नहीं, ऊपर उठा।
उसका "हे राम" शब्द
आज भी गूंजता है मानवता के भीतर।

उसकी मृत्यु अंत नहीं,
नई शुरुआत थी।
उसकी समाधि पत्थर की नहीं,
प्रत्येक भारतीय के हृदय में बनी।

वो हर गाँव में है, हर खेत में,
हर मजदूर के पसीने में,
हर बच्चे के प्रश्न में,
हर बूढ़े की आस्था में।

गांधी कोई व्यक्ति नहीं,
एक चेतना है, एक विचार है।
जो बार-बार जन्म लेता है,
जब भी दुनिया हिंसा में डूबती है।

आज भी जब अन्याय बढ़ता है,
कोई भीतर से कहता है —
“सत्याग्रह करो!”
और वो आवाज़ गांधी की होती है।

उसकी वाणी में शांति है,
उसकी दृष्टि में प्रकाश,
उसकी विरासत एक किताब नहीं,
एक जीवित अनुभव है।

वो मिट्टी में था, मिट्टी में गया,
पर उसकी आत्मा गगन में घुली,
वो चला गया, पर रुक गया,
हर मन में एक दीपक जला गया।

वो साधारण था, पर असाधारण हुआ,
वो मनुष्य था, पर महात्मा हुआ।
जिसने दिखाया —
बिना शस्त्र के भी युद्ध जीता जा सकता है।

उसने कहा —
“अगर एक कदम भी सत्य की ओर बढ़े,
तो हज़ारों अंधेरे हट जाते हैं।”
और आज भी वही सिद्धांत मार्ग दिखाता है।

उसके शब्दों में क्रांति थी,
पर क्रोध नहीं था।
उसकी दृष्टि में राजनीति थी,
पर स्वार्थ नहीं था।

गांधी जी, तू अमर रहेगा,
तेरा नाम समय नहीं मिटा पाएगा,
क्योंकि तू इतिहास नहीं,
मानवता का पर्याय बन गया है।

तेरे बाद भी तेरी राह चली,
तेरे शब्दों से भारत गढ़ा,
और जब-जब सत्य डगमगाया,
तेरी याद ने दिशा दी।

तू गया नहीं —
तेरे विचार अमर हैं,
तेरी मुस्कान आज भी
हर राष्ट्र के विवेक का दर्पण है।

हे सत्य के सन्यासी,
तेरा जीवन एक दीप है,
जो हर युग में जलता रहेगा,
जब तक मनुष्य रहेगा,
जब तक अन्याय रहेगा,
जब तक कोई सत्य बोलेगा।

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