"महात्मा की मृत्यु — और अमरता”
"महात्मा की मृत्यु — और अमरता”
संध्या ढल चुकी थी,
दिल्ली की हवाओं में ठंडक थी,
प्रार्थना सभा की ओर
धीरे-धीरे बढ़ रहे थे वो।
उनके कदमों में थकान नहीं,
बस एक संत की शांति थी,
जैसे जानते हों —
यह चलना आखिरी होगा।
हाथ में माला,
हृदय में राम का नाम,
आँखों में वैराग्य की लौ,
मुख पर सदा का मुस्कान।
भीड़ ने देखा —
वो साधारण वस्त्रों में महान था,
जैसे मिट्टी में से ही
स्वर्ण का देवता निकला हो।
फिर गूँजी आवाज़ —
तीन गोलियाँ,
तीन कंपन,
तीन शब्द — “हे राम!”
धरती ने जैसे धड़कना छोड़ दिया,
वातावरण मौन हो गया,
और समय थम गया —
भारत का हृदय गिर पड़ा।
वो गिरा, पर हार नहीं गया,
क्योंकि मृत्यु ने उसे नहीं छुआ,
मृत्यु केवल शरीर को ले गई,
पर आत्मा बन गई अमर ध्वनि।
“हे राम!” — ये शब्द
इतिहास के पन्नों में नहीं,
मानवता के रगों में बस गए।
लोग रोए, पर वो मुस्कराया,
क्योंकि उसने जाना था —
अहिंसा मरती नहीं,
वो बस रूप बदलती है।
उसकी देह भस्म हुई,
पर विचार जलते रहे —
हर दिल, हर गाँव, हर आत्मा में।
संसार ने देखा —
एक व्यक्ति चला गया,
पर एक कालजयी दर्शन
अमर हो गया।
उसकी चिता पर केवल लकड़ी नहीं जली,
जले थे पाखंड,
अहंकार, और हिंसा के प्रतीक।
उसकी राख से निकला प्रकाश,
जो अब भी मार्ग दिखाता है —
कि जीत तलवार से नहीं,
सत्य से होती है।
वो चला गया,
पर उसकी छड़ी अब भी टिकाई है,
भारत की आत्मा के कंधे पर।
वो गया,
पर उसकी चश्मे की पारदर्शिता
अब भी हमें सिखाती है
कैसे साफ नज़र से देखो दुनिया को।
गांधी की मृत्यु —
वो अंत नहीं थी,
वो जीवन के दर्शन की पुनर्जन्म थी।
जिसने सीखा —
“सत्य” और “प्रेम” का अर्थ,
उसने जाना —
गांधी अब भी जीवित है।
उस दिन गंगा रोई,
यमुना मौन हुई,
सूरज ने सिर झुका लिया,
आसमान ने अपना वस्त्र उतार दिया।
पर धरती बोली —
“वो मेरा बेटा नहीं मरा,
वो मुझमें विलीन हो गया।”
उसकी समाधि पर फूल नहीं,
विचार खिले हैं,
हर युग में नई परिभाषा लेकर।
जब भी कोई अन्याय के खिलाफ
सत्य का दीप जलाता है,
वो वहीं से लौट आता है —
बापू, मुस्कराते हुए।
उसके शब्द अब भी हवा में हैं —
“नेत्र के बदले नेत्र नहीं,
क्षमादान ही विजय है।”
और जब भी कोई बच्चे को
खिलाता है, पढ़ाता है,
गांधी वहीं खड़ा होता है,
अपनी छड़ी के सहारे मुस्कराते हुए।
वो मृत्यु से बड़ा था,
क्योंकि उसने मरने से पहले
जीना सीख लिया था।
उसके लिए जीवन
सिर्फ साँस नहीं था,
बल्कि कर्म का सतत प्रवाह था।
उसके प्राण गए,
पर सिद्धांत अजर हुए,
क्योंकि जो सत्य को जी ले,
वो मृत्यु से परे होता है।
उस दिन दिल्ली ने आँसू बहाए,
पर उसकी आत्मा ने कहा —
“रोओ मत, मेरा काम पूरा हुआ।”
वो साधु, जिसने न कोई ताज पहना,
न कोई सत्ता चाही,
फिर भी वो राजा बना —
दिलों का, आत्माओं का, समय का।
वो जानता था —
“एक जीवन बहुत छोटा है,
पर एक सत्य शाश्वत होता है।”
उसकी मृत्यु का शोर
समुद्रों तक पहुँचा,
और लहरों ने कहा —
“यह मृत्यु नहीं, मोक्ष है।”
आज भी जब भारत थकता है,
कहीं भीतर से आवाज़ आती है —
“उठो, चलो, अभी स्वराज अधूरा है।”
वो आवाज़ किसी नेता की नहीं,
वो आत्मा की पुकार है,
जो गांधी ने हर भारतीय में बो दी।
उसकी समाधि पर लिखा है —
“हे राम” —
और उसके अर्थ में छिपा है
पूरा मानव धर्म।
उसके जाने के बाद
दुनिया थोड़ी खाली लगती है,
पर उसके विचार
हर पथ पर दीपक बन जलते हैं।
वो अब भी चलते हैं —
किसी आश्रम की छाया में,
किसी सत्याग्रह की यात्रा में,
किसी बालक की मासूम नज़र में।
वो अब भी जीवित हैं —
हर करुणा, हर दया, हर क्षमा में।
क्योंकि महात्मा मरते नहीं,
वे बस स्वरूप बदलते हैं,
विचार बनकर जीते हैं,
सत्य बनकर चलते हैं,
और प्रेम बनकर अमर रहते हैं।
♥ ♥
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