छठ: आस्था, अनुशासन और सूर्योपासना का महापर्व — बिहार की आत्मा की अभिव्यक्ति



🌅 छठ: आस्था, अनुशासन और सूर्योपासना का महापर्व — बिहार की आत्मा की अभिव्यक्ति

जब अस्त होते सूर्य की सुनहरी किरणें गंगा या गंडक के जल में घुलकर उसे सुनहले रंग में रंग देती हैं, जब घाटों पर हजारों दीपकों की ज्योति टिमटिमाने लगती है और हवा में भोजपुरी गीतों की स्वर-लहरियाँ तैरने लगती हैं — तब समझ लीजिए कि छठ का पर्व आ गया है।

बिहार की पहचान सिर्फ मिट्टी की खुशबू, लिच्छवी संस्कृति या ऐतिहासिक धरोहरों से नहीं है; उसकी आत्मा छठ में बसती है। यह त्योहार केवल पूजा नहीं — यह जीवन का उत्सव है, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रदर्शन है, और मानव और ब्रह्मांड के बीच संवाद का प्रतीक है।


✦ छठ का अर्थ: सूर्य से संवाद

छठ पूजा सूर्य देव और छठी मइया को समर्पित एक अत्यंत प्राचीन पर्व है। भारतीय सभ्यता के सबसे वैज्ञानिक और पर्यावरण-संवेदनशील अनुष्ठानों में से एक, यह पर्व सूर्य — ऊर्जा और जीवन के स्रोत — के प्रति आभार व्यक्त करता है।

चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत में अनुशासन, शुद्धता और समर्पण का अद्भुत संगम होता है। व्रती — जो प्रायः महिलाएँ होती हैं — शरीर और मन दोनों को तपाकर एक ऐसी साधना करती हैं जो केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक भी है।


✦ चार दिनों की तपस्या और विश्वास

छठ पर्व की शुरुआत होती है “नहाय खाय” से। इस दिन व्रती पवित्र नदी में स्नान कर सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं — कद्दू-भात और दाल, मिट्टी के चूल्हे पर पकाया हुआ। यह शुद्धता की शुरुआत होती है।

दूसरे दिन होता है “खरना”, जहाँ पूरा दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और संध्या के समय गुड़-चावल की खीर और रोटी का प्रसाद बनाकर पूजा की जाती है। इसके बाद शुरू होता है निराहार व्रत — बिना पानी तक के।

तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है — डूबते सूर्य को जल में खड़े होकर अर्घ्य देना, प्रकृति को धन्यवाद देना। और चौथे दिन प्रातःकाल उषा अर्घ्य — जब उदयमान सूर्य को प्रणाम कर व्रत का समापन होता है।

वह दृश्य अवर्णनीय होता है — घाटों पर लाखों दीप जलते हैं, महिलाएँ सिर पर टोकरी लिए खड़ी होती हैं, उनके होंठों पर लोकगीत, आँखों में भक्ति और चेहरों पर शांति होती है। वह दृश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक सौंदर्य का चरम होता है।


✦ बिहार की मिट्टी और छठ का अटूट संबंध

यद्यपि आज छठ पूरे भारत और विश्वभर के प्रवासी बिहारी परिवारों द्वारा मनाया जाता है, पर इसकी आत्मा बिहार में ही बसती है। यहाँ यह त्योहार सामाजिक भेद मिटा देता है। अमीर-गरीब, जाति-धर्म का कोई भेद नहीं रहता — सब एक ही घाट पर, एक ही जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं।

गाँवों में लोग हफ्तों पहले से तैयारी शुरू कर देते हैं। रास्ते साफ़ होते हैं, तालाबों की सफाई होती है, घाटों को सजाया जाता है, घरों की दीवारें पुताई जाती हैं। जो लोग रोज़गार के लिए दूर शहरों में रहते हैं, वे भी हर हाल में अपने गाँव लौटने की कोशिश करते हैं — क्योंकि छठ सिर्फ त्योहार नहीं, घर लौटने का कारण है।

पटना, भागलपुर, गया, दरभंगा या मुज़फ्फरपुर के घाटों पर जब सूर्य अस्त होता है, तब लगता है जैसे पूरा बिहार एक साथ प्रार्थना में खड़ा हो गया हो — शांत, समर्पित और गौरवपूर्ण।


✦ लोकगीतों में बसी आस्था की सुगंध

छठ की सबसे सुंदर बात है इसके लोकगीत। जब महिलाएँ स्वर मिलाकर गाती हैं —
“कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लेके चले ऐ घाघरिया…”
या
“उगा है सूरज देव, भइल प्रभात…”
— तब शब्द नहीं, आस्था बोलती है।

इन गीतों में माँ-बेटी का संबंध, घर-परिवार की आशा, और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता की गूंज होती है। यही गीत पीढ़ियों को जोड़ते हैं, और यही लोक परंपरा बिहार की सांस्कृतिक धारा को जीवित रखती है।


✦ धर्म से परे एक दर्शन

छठ केवल हिन्दू धार्मिक अनुष्ठान नहीं है; यह मानव और प्रकृति के सामंजस्य का उत्सव है। यहाँ कोई पुरोहित नहीं, कोई शोर नहीं — बस सादगी, संयम और शुद्धता।

व्रती मिट्टी के बर्तनों, केले के पत्तों, बाँस की टोकरी, फल, गुड़ और गन्ने का प्रयोग करते हैं। कोई कृत्रिमता नहीं, कोई प्रदूषण नहीं — सब कुछ प्रकृति से लिया गया और प्रकृति को लौटाया गया।

यह त्योहार सिखाता है कि सच्ची पूजा वही है जो पृथ्वी को नुकसान न पहुँचाए। यही कारण है कि छठ को भारत का सबसे पर्यावरण-संवेदनशील पर्व कहा जाता है।


✦ बिहार से दुनिया तक

आज जब प्रवासी बिहारी लोग दुनिया के हर कोने में हैं — दिल्ली, मुंबई, दुबई, लंदन या न्यूयॉर्क — वहाँ भी छठ का दृश्य वही है। छतों पर, कृत्रिम तालाबों में, झीलों के किनारे — हर जगह वही भाव, वही गीत, वही सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा।

यह त्योहार उन प्रवासियों के लिए केवल धार्मिक नहीं, भावनात्मक भी है। यह उन्हें उनकी मिट्टी से जोड़ता है, उनकी जड़ों से मिलाता है, और याद दिलाता है कि वे चाहे जहाँ रहें, बिहार उनके भीतर जीवित है।


✦ आभार की भावना

छठ का मूल संदेश है कृतज्ञता — जीवन के प्रति, प्रकृति के प्रति, परिवार के प्रति।
यह हमें सिखाता है कि श्रद्धा दिखावे में नहीं, अनुशासन में है; पूजा शब्दों में नहीं, कर्म में है।

जब सुबह की पहली किरण उन folded hands पर पड़ती है जो जल में खड़े होकर सूर्य को नमन कर रहे होते हैं, तब वह क्षण केवल धार्मिक नहीं — मानवता का क्षण बन जाता है।


✦ उपसंहार: वह प्रकाश जो कभी नहीं बुझता

छठ का दीपक कभी नहीं बुझता। वह हर वर्ष लौटता है, हर घर में, हर दिल में, हर पीढ़ी में। यह त्योहार माँ से बेटी, और बेटी से आगे बढ़ता रहता है — जैसे गंगा का प्रवाह, जैसे जीवन का चक्र।

छठ हमें याद दिलाता है कि आस्था किसी स्थान में नहीं बसती — वह उस भावना में बसती है जो सूर्य को देखकर मुस्कुराने की ताकत देती है।

बिहार के लिए छठ कोई अवसर नहीं, वह जीवन का पर्याय है।
सूर्य अस्त भी होता है, तो उगने का वादा कर जाता है —
और यही वादा छठ की आत्मा है।



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