गांधीजी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

गांधीजी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

जब भी हम भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात करते हैं, दो नाम अपने-आप एक साथ उभरते हैं — महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC)। कांग्रेस, जिसकी स्थापना 1885 में हुई थी, शुरुआत में शिक्षित वर्ग का एक मंच थी, जो शासन में भागीदारी की माँग कर रहा था। लेकिन महात्मा गांधी के नेतृत्व में यही कांग्रेस एक जनांदोलन में बदल गई — एक ऐसी शक्ति जिसने करोड़ों भारतीयों को स्वतंत्रता की दिशा में अग्रसर किया। गांधीजी और कांग्रेस का संबंध केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक भी था।


कांग्रेस में गांधीजी का प्रवेश

जब महात्मा गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे, तब कांग्रेस एक मोड़ पर खड़ी थी। गोपालकृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेता क्रमशः उदारवादी और उग्रवादी विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। गांधीजी ने तत्काल राजनीति में प्रवेश नहीं किया; उन्होंने पूरे देश की यात्रा की ताकि भारत की वास्तविक स्थिति को समझ सकें।

चंपारण (1917), खेड़ा (1918), और अहमदाबाद मिल मज़दूर आंदोलन (1918) के अनुभवों ने उनके राजनीतिक जीवन की नींव रखी — सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर। 1919 में जलियांवाला बाग़ हत्याकांड और रॉलेट एक्ट ने राष्ट्र की चेतना को झकझोर दिया। कांग्रेस को एक नए मार्गदर्शन की आवश्यकता थी, और गांधीजी ने उसे नैतिक बल के माध्यम से दिशा दी।


गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस का रूपांतरण

गांधीजी के नेतृत्व ने कांग्रेस की प्रकृति ही बदल दी। उनके आने से पहले यह शिक्षित अभिजात वर्ग का संगठन था। गांधीजी ने इसे गाँवों और आम जनजीवन से जोड़ा — किसानों, मज़दूरों, महिलाओं, और शिल्पकारों को आंदोलन का हिस्सा बनाया।

उन्होंने खादी, चरखा और ग्राम-उद्योग को स्वतंत्रता का प्रतीक बनाया। कांग्रेस अधिवेशन अब केवल राजनीतिक सभा नहीं रहे; वे नैतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र बन गए।

1920–22 का असहयोग आंदोलन इस परिवर्तन का परिणाम था। गांधीजी के आह्वान पर लोगों ने विदेशी वस्त्रों, सरकारी नौकरियों, और विद्यालयों का बहिष्कार किया। आंदोलन भले ही चौरी-चौरा की हिंसा के बाद स्थगित हुआ, परंतु देश की आत्मा में “स्वराज” का बीज अंकुरित हो चुका था।


कांग्रेस की विचारधारा और गांधीजी का योगदान

गांधीजी ने कांग्रेस को केवल एक राजनीतिक संगठन नहीं रहने दिया; उन्होंने इसे नैतिक चेतना का आंदोलन बना दिया। उनके लिए राजनीतिक स्वतंत्रता तभी सार्थक थी जब वह आत्म-संयम, आर्थिक स्वावलंबन, और सामाजिक सुधार के साथ जुड़ी हो।

उन्होंने रचनात्मक कार्यक्रम की संकल्पना दी — शिक्षा, स्वच्छता, साम्प्रदायिक एकता, खादी, और ग्रामोदय जैसे कार्य स्वतंत्रता के अंग बन गए। गांधीजी का विश्वास था कि पूर्ण स्वराज तभी संभव है जब भारत आंतरिक रूप से भी स्वतंत्र हो — जाति, धर्म, और वर्ग के बंधनों से मुक्त।


गांधीजी के नेतृत्व में प्रमुख आंदोलन

  1. असहयोग आंदोलन (1920–1922):
    यह पहला अखिल भारतीय आंदोलन था जिसने पूरे देश को एक सूत्र में बाँध दिया।

  2. नमक सत्याग्रह एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930–1934):
    दांडी मार्च से शुरू हुआ यह आंदोलन अन्यायपूर्ण करों और ब्रिटिश प्रभुत्व के विरुद्ध प्रतिरोध का प्रतीक बना।

  3. भारत छोड़ो आंदोलन (1942):
    स्वतंत्रता संघर्ष का अंतिम और सबसे तीव्र चरण। गांधीजी के “करो या मरो” के नारे ने पूरे देश को स्वतंत्रता की अंतिम लड़ाई के लिए प्रेरित किया।

इन सभी आंदोलनों में गांधीजी की छाप स्पष्ट थी — अहिंसा, सत्य, आत्मबल, और एकता


कांग्रेस के भीतर मतभेद और गांधीजी की भूमिका

गांधीजी का नैतिक प्रभाव निर्विवाद था, परंतु उनके तरीकों से हमेशा सभी सहमत नहीं थे। सुभाषचंद्र बोस क्रांतिकारी उपायों के पक्षधर थे, जबकि जवाहरलाल नेहरू समाजवादी और आधुनिक औद्योगिक भारत की परिकल्पना करते थे।

गांधीजी ने इन मतभेदों को संघर्ष नहीं, बल्कि विविधता का प्रतीक माना। उनके अनुसार, “सत्य के अनेक रूप होते हैं, और सच्चे मतभेद राष्ट्र को कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत बनाते हैं।”


कांग्रेस में गांधीजी की विरासत

1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, गांधीजी सक्रिय राजनीति से लगभग दूर हो चुके थे। फिर भी उनकी विचारधारा कांग्रेस की आत्मा में जीवित रही — धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, अहिंसा और सामाजिक न्याय के रूप में।

गांधीजी ने कांग्रेस नेताओं को चेताया कि राजनीतिक सत्ता साधन है, साध्य नहीं। उन्होंने कहा था — “स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है, दूसरों की सेवा में खो जाना।”

उनकी मृत्यु के बाद भी कांग्रेस की दिशा और भारतीय राजनीति की आत्मा में गांधीजी की छाया बनी रही।


निष्कर्ष

महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संबंध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे प्रखर अध्याय है। गांधीजी ने कांग्रेस को राजनीतिक संगठन से उठाकर एक जन-आंदोलन बना दिया। उन्होंने संघर्ष को अहिंसा, सत्य और आत्मबल की शक्ति से जोड़ा।

गांधीजी और कांग्रेस की कहानी केवल राजनीति की नहीं, बल्कि एक राष्ट्र की आत्मा के जागरण की कहानी है। यह हमें याद दिलाती है कि सच्ची स्वतंत्रता केवल शासन परिवर्तन नहीं, बल्कि मानवता, करुणा, और न्याय की स्थापना है।

Comments