रूस–यूक्रेन युद्ध का समाधान : गांधीवादी दर्शन के आधार पर



रूस–यूक्रेन युद्ध का समाधान : गांधीवादी दर्शन के आधार पर

आज का युग फिर से एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहाँ शक्ति और हिंसा को राजनीति का अंतिम साधन मान लिया गया है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध न केवल दो देशों की त्रासदी है, बल्कि पूरी मानवता की संवेदना की परीक्षा है। ऐसे समय में महात्मा गांधी के विचार हमें याद दिलाते हैं कि शांति कभी भी हिंसा से उत्पन्न नहीं होती — वह केवल सत्य, प्रेम और करुणा से संभव है।

संघर्ष की जड़ को समझना

गांधीजी का मानना था कि हिंसा का जन्म भय, असुरक्षा और स्वार्थ से होता है। रूस और यूक्रेन का यह युद्ध भी ऐतिहासिक अविश्वास, राजनीतिक असुरक्षा और सत्ता के लालच की उपज है। गांधीजी कहते — “जो युद्ध बाहर दिख रहा है, वह पहले मन के भीतर जन्म लेता है।”
अगर दोनों देश आत्ममंथन करें, तो पाएंगे कि असली समाधान एक-दूसरे को हराने में नहीं, बल्कि एक-दूसरे को समझने में है।

अहिंसा — सबसे बड़ी शक्ति

गांधीजी के लिए अहिंसा कोई कमजोरी नहीं थी; यह आत्मबल की सर्वोच्च अवस्था थी।
अगर रूस और यूक्रेन गांधीजी की अहिंसा को अपनाएँ, तो बंदूकें और बमों की जगह संवाद और सत्य को स्थान मिलेगा।
अहिंसा का अर्थ केवल युद्ध रोकना नहीं है, बल्कि मन से घृणा और प्रतिशोध को समाप्त करना भी है। जब भय और नफरत खत्म होती है, तभी सच्ची शांति जन्म लेती है।

सत्याग्रह — सत्य की शक्ति

गांधीजी का सत्याग्रह केवल विरोध का माध्यम नहीं, बल्कि नैतिक जागृति का शस्त्र था।
सत्याग्रह का अर्थ है — बिना हिंसा के, बिना झूठ के, दृढ़ता से सत्य पर टिके रहना।
रूस और यूक्रेन दोनों देशों को गांधीजी यही सिखाते कि सच्चा समाधान तब संभव है जब दोनों पक्ष अपनी गलतियों को स्वीकार करें, संवाद में सच्चाई को आधार बनाएं और मानव जीवन को प्राथमिकता दें।

अंतरराष्ट्रीय संगठनों को भी गांधीवादी दृष्टिकोण से “मध्यस्थ” नहीं बल्कि “सत्य के साधक” बनना चाहिए — जो न्याय की नहीं, सच्चाई की खोज करें।

तीसरे पक्ष की भूमिका

गांधीजी मानते थे कि शांति बाहर से थोपी नहीं जा सकती।
आज बड़ी शक्तियाँ युद्ध को रोकने के बजाय उसे बढ़ाने वाले निर्णय ले रही हैं। गांधीजी कहते कि यदि बाहरी देश वास्तव में शांति चाहते हैं, तो उन्हें हथियारों की आपूर्ति नहीं, संवाद की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए।
सच्चा मध्यस्थ वह है जो किसी पक्ष का नहीं, सत्य का साथ दे।

आर्थिक अहिंसा

गांधीजी का एक और महत्वपूर्ण सिद्धांत था — आर्थिक स्वराज
युद्ध केवल गोलियों से नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था से भी लड़ा जाता है।
हथियारों से लाभ कमाने वाली शक्तियाँ इस हिंसा को जीवित रखती हैं।
अगर विश्व गांधीजी के आर्थिक आदर्शों को अपनाए — सादगी, आत्मनिर्भरता और नैतिक व्यापार — तो युद्ध की जड़ कमजोर हो जाएगी।
रूस और यूक्रेन दोनों देशों को युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए सहयोगी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिए।

क्षमा और पुनर्मिलन

गांधीजी कहते थे — “क्षमा वीरों का आभूषण है।”
क्षमा का अर्थ भूलना नहीं, बल्कि घृणा से मुक्त होना है।
इस युद्ध के बाद दोनों देशों के नागरिकों को न केवल सीमाएँ फिर से बनानी होंगी, बल्कि रिश्तों को भी।
सत्य आयोग, जनसंवाद, सांस्कृतिक मेल-जोल — ये गांधीवादी तरीके हैं जो दिलों के बीच की दूरी मिटा सकते हैं।

शिक्षा और संस्कृति का योगदान

गांधीजी के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य शांति और करुणा का विकास है।
रूस और यूक्रेन के बच्चों को युद्ध का गौरव नहीं, शांति का मूल्य सिखाया जाना चाहिए।
संगीत, कला, साहित्य और मानव सेवा जैसे साझा कार्यक्रम दोनों देशों के लोगों को फिर से जोड़ सकते हैं।

विश्व की नैतिक जिम्मेदारी

रूस-यूक्रेन युद्ध केवल दो देशों का मामला नहीं, बल्कि पूरी मानवता की चेतना की परीक्षा है।
गांधीजी की चेतावनी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है —

“आँख के बदले आँख का सिद्धांत पूरी दुनिया को अंधा बना देगा।”

जब दुनिया शक्ति की जगह सत्य को, हिंसा की जगह संवाद को और लालच की जगह करुणा को चुनती है, तब ही वास्तविक शांति का युग प्रारंभ होता है।

निष्कर्ष

गांधीवादी समाधान किसी समझौते की नहीं, बल्कि आत्मिक परिवर्तन की माँग करता है।
जब राष्ट्र अपने हृदय में सत्य, प्रेम और क्षमा के बीज बोते हैं, तो युद्ध अपने आप समाप्त हो जाता है।
गांधीजी का स्वप्न केवल भारत के लिए नहीं था — वह पूरी मानवता के लिए था।

रूस और यूक्रेन यदि इस दर्शन को अपनाएँ, तो यह युद्ध न किसी की हार में समाप्त होगा, न किसी की जीत में,
बल्कि मानवता की विजय में।
यही गांधीजी के विचारों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी — और यही संसार का सबसे बड़ा शांति मार्ग।



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