महात्मा गांधी और स्वच्छता पर उनका दृष्टिकोण
महात्मा गांधी और स्वच्छता पर उनका दृष्टिकोण
जब हम महात्मा गांधी को याद करते हैं, तो हमारे मन में स्वतंत्रता संग्राम, सत्य और अहिंसा की छवि उभरती है। लेकिन गांधीजी के विचारों का एक अत्यंत व्यावहारिक और स्थायी पहलू था — स्वच्छता। गांधीजी मानते थे कि “स्वच्छता ईश्वर के निकटता का प्रतीक है”। उन्होंने इसे केवल व्यक्तिगत आदत नहीं, बल्कि सामाजिक आंदोलन का रूप दिया। उनके लिए स्वच्छता केवल शरीर या वातावरण की नहीं, बल्कि मन और आत्मा की पवित्रता का प्रतीक थी।
स्वच्छता: आत्मिक और राष्ट्रीय अनुशासन का प्रतीक
गांधीजी के लिए स्वच्छता केवल गंदगी हटाने का कार्य नहीं था, बल्कि यह अनुशासन, आत्मसम्मान और दूसरों के प्रति सम्मान की अभिव्यक्ति थी। उनके अनुसार, जो व्यक्ति गंदगी में रहता है, वह आत्मिक रूप से भी शुद्ध नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा था — “स्वच्छता स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है।”
यह कथन इस बात को दर्शाता है कि गांधीजी के लिए स्वच्छ भारत, स्वतंत्र भारत की पहली शर्त थी। उनका विश्वास था कि जो समाज अपने घर, गलियों और परिवेश को स्वच्छ नहीं रख सकता, वह कभी आत्मनिर्भर और सभ्य नहीं बन सकता।
गांधीजी का व्यक्तिगत जीवन और स्वच्छता
गांधीजी ने अपने जीवन में वही किया जो उन्होंने कहा। चाहे दक्षिण अफ्रीका का फीनिक्स सेटलमेंट हो या भारत के साबरमती आश्रम और सेवाग्राम आश्रम — स्वच्छता वहाँ का पहला नियम था।
हर व्यक्ति — पुरुष, महिला, बच्चा या अतिथि — को अपने आसपास की सफाई, बर्तन और शौचालय स्वयं साफ़ करने होते थे। गांधीजी के अनुसार, कोई कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता। झाड़ू लगाना या शौचालय साफ़ करना उनके लिए विनम्रता और समानता का प्रतीक था।
उन्होंने कहा था कि जो व्यक्ति सफाई को नीचा कार्य समझता है, वह वास्तव में अपने भीतर की गंदगी को नहीं पहचानता। गांधीजी के लिए सफाई आत्म-शुद्धि और सेवा का माध्यम थी।
स्वच्छता और जातिगत भेदभाव
गांधीजी की स्वच्छता की भावना केवल शारीरिक सफाई तक सीमित नहीं थी — वह सामाजिक अन्याय के विरुद्ध एक क्रांति थी। उस समय समाज में सफाई का कार्य तथाकथित “नीची जातियों” को सौंपा गया था। गांधीजी ने इस भेदभाव को अस्वीकार किया।
वे स्वयं शौचालय साफ़ करते थे और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करते थे। उन्होंने कहा — “जब तक हर भारतीय अपने हाथों में झाड़ू और बाल्टी नहीं उठाएगा, तब तक भारत स्वच्छ नहीं होगा।”
उन्होंने सफाईकर्मियों को हरिजन — अर्थात “ईश्वर के बच्चे” — कहा और समाज से आग्रह किया कि हर कार्य को समान सम्मान दिया जाए। गांधीजी के लिए स्वच्छता सामाजिक समानता और आत्मसम्मान की पहली सीढ़ी थी।
सामुदायिक स्वच्छता: सामूहिक जिम्मेदारी
गांधीजी मानते थे कि स्वच्छता केवल सरकार या किसी वर्ग की नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। उन्होंने जहाँ-जहाँ यात्रा की, वहाँ सफाई अभियान चलाए। वे स्वयं सड़कों पर गंदगी उठाते थे ताकि लोग उदाहरण से सीखें।
उन्होंने कहा था — “हर व्यक्ति को अपना सफाईकर्मी स्वयं बनना चाहिए।”
उनका विश्वास था कि यदि हर नागरिक अपने घर और आस-पास की सफाई करे, तो पूरा देश स्वतः स्वच्छ हो जाएगा।
उनके लिए स्वच्छता देशभक्ति का प्रतीक थी — क्योंकि स्वच्छ वातावरण राष्ट्र के प्रति सम्मान का संकेत है।
स्वच्छता, स्वास्थ्य और राष्ट्रीय शक्ति
गांधीजी ने स्वच्छता को स्वास्थ्य से जोड़ा। उनका मानना था कि अस्वच्छता बीमारियों की जड़ है, और बीमार राष्ट्र कभी शक्तिशाली नहीं हो सकता। उन्होंने लोगों को सिखाया — हाथ धोना, शुद्ध जल का प्रयोग, स्वच्छ शौचालय का उपयोग, और साफ़-सुथरा रहन-सहन अपनाना।
उनका विचार था कि “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण संभव है।”
स्वच्छता केवल बाहरी रूप में नहीं, बल्कि मानसिक और नैतिक स्वास्थ्य की आधारशिला है।
अंतरात्मा की स्वच्छता
गांधीजी के लिए स्वच्छता केवल बाहरी नहीं थी — वह अंतरात्मा की शुद्धता से जुड़ी थी। उनके अनुसार, मन में क्रोध, लालच, घृणा और ईर्ष्या रखना भी गंदगी का ही एक रूप है। जैसे हम प्रतिदिन स्नान करते हैं, वैसे ही हमें अपने विचारों को भी प्रतिदिन शुद्ध करना चाहिए।
उन्होंने सत्य, करुणा और क्षमा को आंतरिक स्वच्छता का माध्यम माना। उनके आश्रमों में सादगी, संयम और ईमानदारी जीवन के मूल नियम थे।
गांधीजी की विरासत और आज की प्रासंगिकता
गांधीजी का स्वच्छता का सपना आज भी जीवंत है। स्वच्छ भारत अभियान जैसी योजनाएँ सीधे उनके विचारों से प्रेरित हैं। लेकिन गांधीजी की दृष्टि केवल झाड़ू लगाने तक सीमित नहीं थी — वे चाहते थे कि स्वच्छता भारतीय संस्कृति का हिस्सा बने, एक जीवन-मूल्य बने।
उनका सपना था — ऐसा भारत जहाँ कोई सफाई को नीचा कार्य न माने, हर गाँव स्वावलंबी हो, हर नागरिक जागरूक हो, और हर हृदय पवित्र हो।
निष्कर्ष
महात्मा गांधी का स्वच्छता पर जोर केवल स्वास्थ्य या सुंदरता के लिए नहीं था — यह आत्म-शुद्धि, समानता, और राष्ट्र निर्माण का साधन था। उन्होंने सिखाया कि स्वतंत्रता तभी सार्थक है जब वह अनुशासन और पवित्रता से जुड़ी हो।
उनके लिए झाड़ू एक प्रतीक था — सेवा, विनम्रता और आत्म-सुधार का प्रतीक।
आज भी जब हम स्वच्छ भारत की बात करते हैं, गांधीजी का broom (झाड़ू) हमें याद दिलाता है कि सच्ची स्वतंत्रता स्वच्छ हाथों, स्वच्छ विचारों, और स्वच्छ हृदय से ही संभव है।
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