गांधीजी और विश्व की दृष्टि – शांति के वैश्विक दूत

गांधीजी और विश्व की दृष्टि – शांति के वैश्विक दूत

महात्मा गांधी केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नेता नहीं थे, वे मानवता के ऐसे पथप्रदर्शक थे जिन्होंने पूरी दुनिया को अहिंसा और सत्य का पाठ पढ़ाया। उनका जीवन केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं था, बल्कि वह एक ऐसा संदेश था जिसने सीमाओं, धर्मों और नस्लों के पार जाकर पूरी मानव सभ्यता को झकझोर दिया। आज जब हम गांधीजी को याद करते हैं, तो यह समझना आवश्यक है कि विश्व ने उन्हें किस दृष्टि से देखा और उनके विचारों ने किस प्रकार वैश्विक चिंतन को प्रभावित किया।


शक्ति की परिभाषा को बदल देने वाले व्यक्ति

गांधीजी का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने शक्ति का अर्थ ही बदल दिया। उस युग में जब हिंसा और युद्ध को ही सामर्थ्य का प्रतीक माना जाता था, गांधीजी ने दिखाया कि नैतिक बल किसी भी भौतिक बल से बड़ा होता है।
उनका हथियार न तो बंदूक था, न तलवार – उनका हथियार था सत्याग्रह, जो सत्य पर अडिग रहने का प्रतीक था। दक्षिण अफ्रीका की जेलों से लेकर भारत के दांडी मार्च तक उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि अन्याय से लड़ने के लिए घृणा नहीं, बल्कि प्रेम और धैर्य की आवश्यकता होती है।

उन्होंने दुनिया को यह दिखाया कि किसी भी साम्राज्य को गिराने के लिए हिंसा नहीं, बल्कि नैतिक दृढ़ता ही पर्याप्त है।


गांधी दर्शन की वैश्विक गूंज

गांधीजी के विचार केवल भारत तक सीमित नहीं रहे। दुनिया के हर कोने में उनके सिद्धांतों ने परिवर्तन की लहरें पैदा कीं।

  • मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमेरिका में अपने सिविल राइट्स मूवमेंट के लिए गांधीजी को ही प्रेरणा माना। उन्होंने कहा था – “गांधी हमारे अहिंसक आंदोलन के पथप्रदर्शक हैं।”
  • नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष करते हुए गांधीजी की शिक्षाओं को अपने जीवन का आधार बनाया।
  • आइंस्टीन ने गांधीजी के लिए लिखा – “आने वाली पीढ़ियाँ शायद ही विश्वास करेंगी कि ऐसा व्यक्ति हड्डी-मांस का बना इस पृथ्वी पर कभी चला था।”
  • बराक ओबामा ने कहा कि अगर गांधी आज जीवित होते, तो दुनिया अपने तमाम संकटों के समाधान के लिए उनकी ओर देखती।

इस प्रकार गांधीजी केवल भारत के ही नहीं, बल्कि विश्व के भी नैतिक नेता बन गए।


पश्चिम की दृष्टि में गांधी

पश्चिमी जगत ने गांधीजी में उस आध्यात्मिकता को देखा, जो औद्योगिक क्रांति के बाद उनके समाज से लुप्त हो गई थी।
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने उन्हें “ईसा मसीह के बाद सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति” कहा। रोमां रोलां ने उनकी जीवनी लिखी और उन्हें “एक नए मसीहा” की उपाधि दी।

गांधीजी का सादा जीवन, उनका खादी पहनना, चरखा कातना, शाकाहार अपनाना — यह सब पश्चिम के लिए एक अद्भुत उदाहरण था। उन्होंने दिखाया कि सच्ची प्रगति भौतिक सुखों से नहीं, बल्कि आत्मानुशासन और नैतिकता से होती है।

यहां तक कि जो लोग उनके राजनीतिक दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे, वे भी उनकी ईमानदारी और सादगी के कायल थे।


पूर्व की दृष्टि में गांधी

एशिया और अफ्रीका में गांधीजी केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचार बन गए। म्यांमार, श्रीलंका, वियतनाम, इंडोनेशिया और जापान में उनके विचारों से प्रेरित आंदोलनों ने जन्म लिया।

जापानी चिंतक टोयोहिको कागावा और चीनी नेता सुन यात-सेन ने गांधीजी के अहिंसक प्रतिरोध के सिद्धांतों को अपने समाज सुधार में अपनाया।
उनका संदेश “सबका कल्याण” यानी सर्वोदय पूरे एशिया की आध्यात्मिक परंपराओं से मेल खाता था। उन्होंने सिखाया कि “दुनिया में सभी की जरूरतों के लिए पर्याप्त है, लेकिन किसी एक की लालच के लिए नहीं।”


गांधीजी की अनंत प्रासंगिकता

आज जब दुनिया हिंसा, असमानता, और पर्यावरणीय संकटों से जूझ रही है, तब गांधीजी के विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं।
उनका ट्रस्टीशिप सिद्धांत पूंजीपतियों और नेताओं को याद दिलाता है कि संपत्ति मानवता की सेवा के लिए है, शोषण के लिए नहीं।
उनका अहिंसा सिद्धांत यह सिखाता है कि शांति कमजोरी नहीं, बल्कि उच्चतम शक्ति का प्रतीक है।

संयुक्त राष्ट्र ने 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित कर उन्हें विश्व का नैतिक मार्गदर्शक स्वीकार किया है।


विश्व का अंतरात्मा स्वरूप गांधी

गांधीजी आज भी दुनिया की अंतरात्मा के रूप में देखे जाते हैं। उन्होंने कहा था – “मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।”
उन्होंने हमें सिखाया कि समाज में सुधार की शुरुआत स्वयं से होती है। जब व्यक्ति सत्य और प्रेम के मार्ग पर चलता है, तब समाज स्वतः परिवर्तित होता है।

आज जब दुनिया फिर से युद्धों, घृणा और भौतिक लालच में डूबी है, तब गांधीजी की सरल वाणी हमें याद दिलाती है कि “अहिंसा ही मानवता का अंतिम धर्म है।”


निष्कर्ष

महात्मा गांधी का जीवन केवल भारत की स्वतंत्रता का इतिहास नहीं है, यह सम्पूर्ण मानवता की आत्मा की कहानी है।
उन्होंने दिखाया कि नैतिकता और करुणा से संसार को जीता जा सकता है। उनका प्रभाव समय और सीमाओं से परे है।

गांधीजी भले ही 1948 में इस संसार से चले गए हों, लेकिन उनके विचार आज भी उतने ही जीवंत हैं।
जब भी दुनिया अन्याय के अंधेरे में भटकेगी, गांधीजी की दी हुई रोशनी उसे मार्ग दिखाती रहेगी।



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