आर. के. लक्ष्मण का मौन कार्टून: कॉमन मैन और महात्मा गांधी के प्रति निःशब्द श्रद्धांजलि
आर. के. लक्ष्मण का मौन कार्टून: कॉमन मैन और महात्मा गांधी के प्रति निःशब्द श्रद्धांजलि
इतिहास के कुछ क्षण ऐसे होते हैं जब शब्दों से अधिक मौन बोलता है। भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में ऐसा ही एक अमर क्षण रचा था देश के महान व्यंग्यचित्रकार आर. के. लक्ष्मण ने। वे अपने तीखे लेकिन सरल व्यंग्य के लिए जाने जाते थे — आम आदमी के दर्द, संघर्ष और बेबसी को उन्होंने रेखाओं में ढाल दिया था। परंतु 30 जनवरी 1948, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या हुई, उस दिन लक्ष्मण का व्यंग्य मौन हो गया — पर उसकी गूंज पूरे राष्ट्र में सुनाई दी।
उस दिन उन्होंने एक निःशब्द कार्टून बनाया — जिसमें उनका मशहूर पात्र ‘कॉमन मैन’ गांधीजी की चिता के सामने सिर झुकाए खड़ा था। न कोई शब्द, न कोई संवाद, न कोई व्यंग्य — सिर्फ मौन। यह मौन शोक था, श्रद्धा थी, और एक ऐसे दुख की अभिव्यक्ति थी जिसे शब्दों में बाँधना असंभव था।
आर. के. लक्ष्मण का कॉमन मैन हमेशा भारत का प्रतीक रहा — एक साधारण व्यक्ति जो राजनीति, महंगाई, भ्रष्टाचार और समाज की विसंगतियों के बीच खड़ा होकर सब देखता रहा, सब सहता रहा। लेकिन उस दिन, वह भी शब्दहीन था। वह अब सिर्फ एक दर्शक नहीं था, बल्कि एक शोकग्रस्त भारतीय था — जिसने अपने मार्गदर्शक को खो दिया था।
उस कार्टून में दिखाई गई शांति किसी हार की नहीं थी, बल्कि उस सच्चाई की थी जो आत्मा को झकझोर देती है। गांधीजी की चिता केवल उनके शरीर का अंत नहीं थी, वह उस युग के आदर्शों की अग्नि थी — सत्य, अहिंसा, करुणा और सादगी की अग्नि। और उस अग्नि के सामने झुका कॉमन मैन हर भारतीय की आत्मा का प्रतीक बन गया था।
लक्ष्मण ने उस एक चित्र में वह सब कह दिया जो शब्द नहीं कह सकते थे। न कोई शीर्षक, न कोई संदेश — सिर्फ एक गहरी भावनात्मक छवि। यह कार्टून भारतीय पत्रकारिता की सबसे संवेदनशील श्रद्धांजलियों में से एक माना जाता है। इसने न हँसाया, न सोचने पर मजबूर किया — इसने रुला दिया।
आज जब हम आर. के. लक्ष्मण की जयंती पर उन्हें स्मरण करते हैं, यह कार्टून हमें याद दिलाता है कि कला का सबसे ऊँचा रूप वह है जो आत्मा को छू जाए। लक्ष्मण का मौन व्यंग्य बताता है कि कभी-कभी मौन ही सबसे प्रबल अभिव्यक्ति होता है।
उनकी यह रचना केवल एक दृश्य नहीं, एक भाव है — वह क्षण जब पूरी राष्ट्र ने मौन होकर अपने बापू को अंतिम विदाई दी थी। और कॉमन मैन आज भी उसी चिता के सामने खड़ा है — सिर झुकाए, जैसे राष्ट्र का अंतर्मन अब भी गांधी के मूल्य खोज रहा हो।
संदेश:
सच्ची श्रद्धांजलि शब्दों से नहीं, कर्म से दी जाती है। आर. के. लक्ष्मण का यह मौन कार्टून हमें याद दिलाता है कि बापू की विचारधारा आज भी हमारी आत्मा में जीवित रहनी चाहिए। जब शब्द खो जाएँ, तो सिर झुकाकर मौन ही सबसे बड़ी प्रार्थना बन जाता है।
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