नेहरू बनाम मोदी: दो युगों की कहानी
नेहरू बनाम मोदी: दो युगों की कहानी
भारत का राजनीतिक इतिहास दो महान नेताओं के नाम से गहराई से जुड़ा है — पंडित जवाहरलाल नेहरू और नरेंद्र मोदी।
एक ने आज़ादी के बाद भारत को दिशा दी, तो दूसरे ने वैश्विक युग में भारत की पहचान को सशक्त किया।
दोनों के बीच तुलना करना सिर्फ व्यक्तित्वों का नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं और युगों के टकराव का प्रतीक है —
एक था भारत के निर्माण का युग, दूसरा है भारत के पुनर्निर्माण का।
परिप्रेक्ष्य: दो अलग-अलग भारत
1947 में जब जवाहरलाल नेहरू ने सत्ता संभाली, तब भारत एक टूटा हुआ, भूखा और विभाजन की पीड़ा से गुज़रता देश था।
उनके सामने चुनौती थी — लोकतंत्र को जीवित रखना, संस्थानों की नींव रखना और लोगों में विश्वास जगाना।
वहीं नरेंद्र मोदी ने 2014 में एक ऐसे भारत को संभाला जो आत्मविश्वासी, उभरती अर्थव्यवस्था वाला और तकनीकी रूप से अग्रणी था, पर भीतर से परेशान — भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, सामाजिक तनाव और असमानता से जूझता हुआ।
नेहरू को मिला भारत घायल था, मोदी को मिला भारत बेचैन। दोनों को अपने-अपने युग में राष्ट्र की दिशा तय करनी थी।
विचारधारा और दृष्टिकोण
नेहरू का भारत था विचार, आदर्श और तर्क का भारत।
उन्होंने धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और वैज्ञानिक सोच को राष्ट्र की रीढ़ माना।
उनकी दृष्टि एक ऐसे भारत की थी जो आधुनिक हो लेकिन मानवीय मूल्यों से जुड़ा रहे।
वे संस्थाओं, संवाद और असहमति के सम्मान में विश्वास रखते थे।
मोदी का भारत है कर्म, निर्णय और परिणाम का भारत।
उनकी दृष्टि “नए भारत” की है — जो आत्मनिर्भर, तेज़, गर्वित और वैश्विक मंच पर मुखर हो।
मोदी की राजनीति राष्ट्रवाद, विकास और सशक्त नेतृत्व पर आधारित है।
जहां नेहरू तर्क से मनाते थे, मोदी भावना से जोड़ते हैं।
आर्थिक दर्शन: समाजवाद बनाम बाज़ारवाद
नेहरू का आर्थिक दर्शन राज्य-नियंत्रित विकास मॉडल पर आधारित था।
उनकी नीतियों में पंचवर्षीय योजनाएँ, सार्वजनिक क्षेत्र, और वैज्ञानिक संस्थान प्रमुख थे।
उन्होंने मान लिया था कि गरीब देश में सामाजिक न्याय के बिना आर्थिक विकास अधूरा रहेगा।
हालांकि आगे चलकर यही मॉडल “लाइसेंस राज” और धीमी अर्थव्यवस्था का कारण भी बना।
मोदी की नीति इसके विपरीत उद्यमिता और निजी निवेश पर आधारित है।
उनकी योजनाएँ — मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और आत्मनिर्भर भारत —
एक ऐसे राष्ट्र की परिकल्पना करती हैं जो अपने बल पर विश्व बाज़ार में प्रतिस्पर्धा करे।
जहां नेहरू ने राज्य को केंद्र में रखा, वहीं मोदी ने नागरिक और उद्यम को केंद्र में रखा।
विदेश नीति: गुटनिरपेक्षता बनाम आत्मविश्वासी कूटनीति
नेहरू की विदेश नीति आदर्शवाद पर आधारित थी।
उन्होंने “गुटनिरपेक्ष आंदोलन” की नींव रखी और भारत को शीतयुद्ध की राजनीति से दूर रखा।
उनका मानना था कि भारत नैतिक नेतृत्व से दुनिया को दिशा दे सकता है।
हालांकि चीन नीति को लेकर उन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ी।
मोदी की विदेश नीति व्यावहारिक और रणनीतिक है।
उन्होंने अमेरिका, जापान, इज़रायल और रूस के साथ मजबूत रिश्ते बनाए।
मोदी का विदेश दौरों में जन-संपर्क, प्रवासी भारतीयों से जुड़ाव और सीधी भागीदारी ने भारत की छवि को निखारा।
नेहरू ने भारत को नैतिक शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया, मोदी ने उसे वैश्विक शक्ति के रूप में खड़ा किया।
राजनीतिक शैली और जनसंपर्क
नेहरू एक विद्वान लोकतांत्रिक नेता थे — शिक्षित, संवेदनशील और विचारशील।
उनका आकर्षण उनके विचार और भावनाओं में था। वे सभ्य संवाद और संस्थागत राजनीति में विश्वास करते थे।
मोदी एक जननायक हैं — संघर्ष से उभरे, ज़मीन से जुड़े और आम जनता की भाषा बोलने वाले।
उनका संवाद शैली भावनात्मक है, जो जन-मन तक पहुँचती है।
जहां नेहरू का भारत किताबों और संसद में बसता था, वहीं मोदी का भारत सोशल मीडिया और जनसभाओं में धड़कता है।
धर्मनिरपेक्षता बनाम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
नेहरू के भारत की आत्मा थी धर्मनिरपेक्षता।
उन्होंने राज्य को धर्म से अलग रखने की नीति अपनाई।
उनका विश्वास था कि भारत तभी मज़बूत रहेगा जब हर धर्म को समान सम्मान मिलेगा।
मोदी के भारत की आत्मा है सांस्कृतिक पुनर्जागरण।
वे मानते हैं कि भारत की सभ्यता और परंपरा को सम्मान देना आधुनिकता के विपरीत नहीं है।
उनके समर्थकों के लिए यह “भारतीय चेतना का पुनरुत्थान” है, जबकि आलोचक इसे नेहरू के धर्मनिरपेक्ष भारत से दूरी मानते हैं।
संस्थाएं और शासनशैली
नेहरू ने संस्थाएं बनाई — संसद, योजना आयोग, आईआईटी, आईआईएम, इसरो और प्रेस की स्वतंत्रता।
वे मानते थे कि व्यक्ति नहीं, संस्थान ही लोकतंत्र को स्थायी बनाते हैं।
मोदी ने प्रणालियों में गति और परिणाम लाए।
उनका फोकस क्रियान्वयन पर है — योजनाओं को ज़मीन तक पहुँचाना, तकनीक के माध्यम से पारदर्शिता लाना।
हालांकि आलोचक कहते हैं कि केंद्रीकरण बढ़ा है और संस्थाओं की स्वायत्तता कम हुई है।
नेहरू ने ढांचा बनाया, मोदी ने उसे गति दी।
विरासत और प्रभाव
नेहरू की विरासत हमें लोकतंत्र, शिक्षा और वैज्ञानिक सोच के रूप में मिली।
उन्होंने भारत की आत्मा को आधुनिकता की ओर मोड़ा।
मोदी की विरासत है आत्मगौरव, आत्मनिर्भरता और विश्व मंच पर भारत की दृढ़ पहचान।
उन्होंने भारत की छवि को “विकासशील” से “निर्णायक” राष्ट्र में बदल दिया।
निष्कर्ष: तुलना नहीं, संतुलन
नेहरू और मोदी दो विपरीत दिशाओं के प्रतीक हैं —
एक ने भारत को सपने दिए, दूसरे ने उन्हें साकार करने का संकल्प लिया।
एक ने नींव रखी, दूसरे ने उस पर इमारत खड़ी की।
भारत को इन दोनों की ज़रूरत है —
नेहरू की दूरदर्शिता और मोदी की दृढ़ता,
नेहरू की विचारशीलता और मोदी की क्रियाशीलता।
भारत की कहानी इन दोनों को मिलाकर ही पूरी होती है —
एक भारत था जो जन्म ले रहा था,
दूसरा भारत है जो नए आत्मविश्वास के साथ पुनर्जन्म ले रहा है।
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