इंदिरा गांधी बनाम नरेंद्र मोदी : दो युग, दो शैली, एक राष्ट्र



इंदिरा गांधी बनाम नरेंद्र मोदी : दो युग, दो शैली, एक राष्ट्र

भारतीय राजनीति को आकार देने वाले नेताओं में कुछ नाम ऐसे हैं जिन्होंने न केवल अपने समय को परिभाषित किया, बल्कि देश की दिशा भी तय की। ऐसे दो नाम हैं — इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी
दोनों ने भारत पर अद्वितीय प्रभाव डाला, दोनों ने सत्ता को अपने हाथों में केंद्रीकृत किया, दोनों ने जनता से सीधा संवाद बनाया, और दोनों ने ऐसे राजनीतिक युग खड़े किए जिन्हें इतिहास लंबे समय तक याद रखेगा।
परंतु इन दोनों नेताओं की सोच, पृष्ठभूमि और कार्यशैली पूरी तरह अलग थीं।


इंदिरा गांधी का उदय : भारत की लौह महिला

इंदिरा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुत्री थीं, परन्तु सत्ता उन्हें विरासत में नहीं मिली थी — उन्होंने उसे अपने निर्णय, साहस और दृढ़ता से अर्जित किया।
सन् 1966 में जब वे प्रधानमंत्री बनीं, तो कई लोगों ने उन्हें “गूंगी गुड़िया” कहा। लेकिन कुछ ही वर्षों में वही महिला “लौह महिला” बन गईं।

भारत उस समय गहरे आर्थिक संकट से जूझ रहा था — खाद्यान्न की कमी, बेरोजगारी, सीमाओं पर असुरक्षा और राजनीतिक अस्थिरता।
इंदिरा गांधी ने एक सशक्त और केंद्रीकृत शासन व्यवस्था पर भरोसा किया। उन्होंने “गरीबी हटाओ” का नारा देकर आम जनता के मन में अपनी जगह बनाई।

बैंक राष्ट्रीयकरण, रियासतों की प्रिवी पर्स समाप्ति, तथा सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार — इन सब कदमों से उन्होंने एक समाजवादी भारत की दिशा तय की।
1971 का भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश का निर्माण उनके नेतृत्व की सबसे बड़ी उपलब्धि बनी। उस समय इंदिरा गांधी का व्यक्तित्व केवल भारत में नहीं, विश्व पटल पर चमकने लगा था।

लेकिन 1975 में लगाया गया आपातकाल (Emergency) उनकी सबसे बड़ी आलोचना का कारण बना। प्रेस पर सेंसरशिप, विपक्ष के नेताओं की गिरफ़्तारी और नागरिक स्वतंत्रताओं का हनन — इन सबने भारतीय लोकतंत्र को हिला दिया।
फिर भी, इंदिरा गांधी एक ऐसी नेता थीं जिन्होंने देश को भय और आदर दोनों से जोड़े रखा।


नरेंद्र मोदी का उदय : नये भारत का नेतृत्व

नरेंद्र मोदी की यात्रा इंदिरा गांधी से बिल्कुल भिन्न रही। उन्होंने सत्ता विरासत में नहीं पाई — उन्होंने इसे जनता के बीच से हासिल किया।
एक साधारण चाय बेचने वाले से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक का सफर, भारतीय लोकतंत्र की सबसे प्रेरक कहानियों में से एक है।

2014 में जब उन्होंने सत्ता संभाली, तब देश भ्रष्टाचार, आर्थिक मंदी और नीति-शून्यता से जूझ रहा था। मोदी ने “न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन” का नारा दिया और एक नये, आत्मनिर्भर भारत की दृष्टि प्रस्तुत की।

उनकी सरकार ने कई योजनाएँ चलाईं — स्वच्छ भारत मिशन, डिजिटल इंडिया, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया
उन्होंने विकास को राजनीति का केंद्र बनाया और जनता से सीधा संवाद स्थापित किया।

परंतु मोदी युग भी विवादों से अछूता नहीं रहा। नोटबंदी (2016), अनुच्छेद 370 का हटाया जाना, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), किसान आंदोलन, और धार्मिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दों ने उनके शासन को चर्चा में रखा।
कुछ लोग उन्हें राष्ट्र की शक्ति और आत्मविश्वास का प्रतीक मानते हैं, जबकि आलोचक उन्हें एक “सत्ता-केंद्रित नेता” के रूप में देखते हैं।


नेतृत्व शैली : करिश्मा और नियंत्रण

इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी दोनों की सबसे बड़ी समानता है — उनकी व्यक्तिगत करिश्मा और जनता से सीधा जुड़ाव
दोनों अपने दल से बड़े नेता बन गए।
इंदिरा “राष्ट्रमाता” के रूप में जानी गईं, तो मोदी “विश्वगुरु” और “विकासपुरुष” के रूप में।

इंदिरा का नेतृत्व मातृत्व भाव से भरा था — वे गरीबों की रक्षक की छवि में दिखती थीं।
वहीं मोदी का नेतृत्व राष्ट्रनिर्माता और प्रेरक व्यक्तित्व की तरह उभरा।

दोनों ने अपनी-अपनी पार्टी में शक्ति को केंद्रीकृत किया — इंदिरा ने कांग्रेस को अपने नियंत्रण में किया, तो मोदी ने भाजपा को अपने नेतृत्व के तहत सशक्त किया।
फर्क बस इतना है कि इंदिरा का दौर रेडियो और अखबारों का था, जबकि मोदी का युग डिजिटल युग है।
जहां इंदिरा गांधी जनता से सभाओं के माध्यम से जुड़ीं, वहीं मोदी सोशल मीडिया और मन की बात जैसे कार्यक्रमों से हर घर तक पहुँचते हैं।


आर्थिक दृष्टिकोण : समाजवाद बनाम बाजार आधारित राष्ट्रवाद

इंदिरा गांधी की आर्थिक नीतियाँ समाजवादी विचारधारा पर आधारित थीं।
वे मानती थीं कि राज्य को प्रमुख उद्योगों और बैंकों का नियंत्रण रखना चाहिए ताकि अमीर और गरीब के बीच की दूरी घटाई जा सके।
परंतु इन नीतियों के परिणामस्वरूप सरकारी तंत्र का अत्यधिक बोझ और धीमी आर्थिक वृद्धि देखने को मिली।

नरेंद्र मोदी की नीतियाँ बाज़ार-उन्मुख और उद्यमशीलता पर आधारित हैं।
उन्होंने निजीकरण, निवेश और स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा दिया।
जीएसटी, आत्मनिर्भर भारत, और ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस जैसे कदमों ने भारत की आर्थिक दिशा को नया रूप दिया।
फिर भी, बेरोजगारी और असमानता जैसी चुनौतियाँ उनके शासन में भी बनी हुई हैं।


विदेश नीति : वैश्विक मंच पर भारत की पहचान

इंदिरा गांधी ने भारत को गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement) का नेतृत्वकर्ता बनाया।
वे अमेरिका और सोवियत संघ दोनों से संबंध रखते हुए स्वतंत्र विदेश नीति की पक्षधर थीं।
1971 के युद्ध में उनकी कूटनीति और निर्णय शक्ति ने भारत को दक्षिण एशिया की प्रमुख शक्ति बना दिया।

नरेंद्र मोदी ने विदेश नीति को एक नए आत्मविश्वास के साथ पेश किया।
उन्होंने भारत को “विश्व मंच पर एक निर्णायक खिलाड़ी” के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया।
अमेरिका, जापान, इसराइल, रूस और खाड़ी देशों के साथ उनके संबंधों ने भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत किया।
जी-20 शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन और प्रवासी भारतीयों से जुड़ाव ने मोदी की अंतरराष्ट्रीय छवि को और उभारा।


लोकतंत्र और असहमति

इंदिरा गांधी का आपातकाल और मोदी युग की आलोचनाएँ दोनों ही लोकतंत्र की सीमाओं पर प्रश्न उठाते हैं।
1975 का आपातकाल खुला तानाशाही काल था — प्रेस पर अंकुश, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी और संविधान की शक्तियों का दुरुपयोग।

वहीं मोदी युग में लोकतंत्र कागज़ पर मजबूत है, लेकिन कई लोग मानते हैं कि विपक्ष, मीडिया और असहमति की आवाज़ें दबाई जा रही हैं।
जांच एजेंसियों के इस्तेमाल, मीडिया पक्षधरता और विरोध प्रदर्शनों पर अंकुश के कारण कई बुद्धिजीवी इसे “मौन आपातकाल” कहते हैं।
हालांकि समर्थक इसे “अनुशासन और निर्णायक नेतृत्व” का प्रतीक मानते हैं, न कि अधिनायकवाद का।


छवि निर्माण की राजनीति

इंदिरा गांधी की छवि त्याग, संघर्ष और सादगी से बनी।
वे ग्रामीण भारत में घूमती थीं, साड़ी पहनकर आमजन से जुड़ती थीं।
मोदी की छवि आधुनिकता, आक्रामक राष्ट्रवाद और डिजिटल रणनीति से निर्मित हुई है।
उनके योग, ध्यान और पर्वतीय यात्राओं की तस्वीरें, भव्य भाषण और सोशल मीडिया अभियानों ने उन्हें एक वैश्विक ब्रांड बना दिया है।

दोनों नेताओं ने यह साबित किया कि राजनीति केवल नीति नहीं, बल्कि छवि और प्रतीकवाद की कला भी है।


विरासत : दो भारत, दो युग

इंदिरा गांधी का भारत एक संघर्षशील भारत था — जो गरीबी, विभाजन और अस्थिरता से जूझ रहा था।
नरेंद्र मोदी का भारत एक आत्मविश्वासी, डिजिटल और महत्वाकांक्षी भारत है — जो वैश्विक नेतृत्व का सपना देख रहा है।

फिर भी, दोनों की विरासतें भारतीय मानस में गहराई से अंकित हैं।
इंदिरा गांधी ने भारत को स्थिरता और आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया।
नरेंद्र मोदी ने भारत को विश्व स्तर पर आत्मविश्वास और तकनीकी सशक्तिकरण का मार्ग दिखाया।


निष्कर्ष : समानताएँ और विरोधाभास

इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी — दोनों ही लोकप्रिय और शक्तिशाली नेता हैं, जिन्होंने अपने-अपने युग को परिभाषित किया।
एक ने देश को जोड़ा, दूसरे ने उसे आगे बढ़ाया।
एक ने समाजवाद से शासन चलाया, दूसरे ने राष्ट्रवाद और विकासवाद से।

दोनों ने यह दिखाया कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में एक “मजबूत नेता” जनता के दिल में उतना ही प्रिय हो सकता है, जितना विवादास्पद।
जहाँ इंदिरा गांधी ने भारत की एकता की नींव मजबूत की, वहीं नरेंद्र मोदी भारत की पहचान को वैश्विक मंच पर स्थापित कर रहे हैं।

अंततः सवाल यह नहीं है कि कौन महान है —
बल्कि यह कि दोनों ने भारत को अपने-अपने युग में किस रूप में गढ़ा।
एक ने संघर्षशील भारत बनाया, दूसरे ने आत्मविश्वासी भारत।
और यही दोनों की सबसे बड़ी समानता और सबसे बड़ा विरोधाभास है।





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