गांधी और बुद्ध — करुणा और सत्य के दो युगपुरुष

गांधी और बुद्ध — करुणा और सत्य के दो युगपुरुष

भारत की भूमि सदा से संतों, महापुरुषों और सत्य के खोजियों की धरती रही है। इसी पवित्र भूमि ने दो ऐसे व्यक्तित्वों को जन्म दिया, जिन्होंने न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण विश्व के नैतिक और आध्यात्मिक चिंतन को दिशा दी — भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी
एक ने अहिंसा और करुणा का मार्ग दिखाकर मनुष्य को दुःख से मुक्ति का उपाय बताया, तो दूसरे ने उन्हीं सिद्धांतों को जीवन में उतारकर सामाजिक और राजनीतिक क्रांति का स्वरूप दिया। दोनों ने यह सिद्ध किया कि सच्चा परिवर्तन बाहरी शक्ति से नहीं, बल्कि आंतरिक जागृति से आता है।


आंतरिक शांति से बाहरी परिवर्तन तक

भगवान बुद्ध ने कहा था — “अत्त दीपो भव” अर्थात् “स्वयं अपना दीपक बनो।” गांधीजी ने इसी सिद्धांत को अपनाया और कहा — “Be the change you wish to see in the world” अर्थात् “वह परिवर्तन स्वयं बनो जो तुम दुनिया में देखना चाहते हो।”
दोनों ही युगपुरुषों ने आत्म-संयम और आत्म-शुद्धि को जीवन का आधार माना। बुद्ध के लिए मोक्ष का मार्ग आत्मचिंतन और ध्यान था, जबकि गांधी के लिए स्वराज का मार्ग आत्मानुशासन और नैतिक बल था।

गांधीजी ने बुद्ध के मध्यम मार्ग को व्यवहार में उतारा — न अति भोग, न अति त्याग, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन। यही संतुलन उन्हें राजनैतिक संघर्ष में भी शांत और संयमी बनाए रखता था।


अहिंसा: दोनों की आत्मा का सार

अगर किसी एक सिद्धांत ने बुद्ध और गांधी दोनों को जोड़ा है, तो वह है अहिंसा
बुद्ध ने कहा था — “अहिंसा परमो धर्मः” — अर्थात् अहिंसा ही सर्वोच्च धर्म है। गांधीजी ने इसे केवल उपदेश नहीं, बल्कि जीवन का कर्म बना दिया।

जब पूरी दुनिया हिंसा को शक्ति का प्रतीक मान रही थी, गांधीजी ने दिखाया कि बिना हथियार के भी साम्राज्य को झुकाया जा सकता है।
उन्होंने बुद्ध की करुणा को कर्म में बदला। जहां बुद्ध ने युद्धरत मानव के भीतर शांति जगाई, वहीं गांधी ने शांति को सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन का औजार बनाया।

बुद्ध की अहिंसा का रूप था करुणा — सब जीवों के प्रति दया;
गांधी की अहिंसा का रूप था सत्याग्रह — अन्याय के विरुद्ध प्रेमपूर्ण प्रतिरोध।


सत्य और करुणा का संगम

बुद्ध ने कहा — “सत्य की खोज स्वयं से आरंभ होती है।”
गांधीजी ने कहा — “सत्य ही ईश्वर है।”
दोनों की दृष्टि में सत्य केवल एक दार्शनिक विचार नहीं था, बल्कि जीवन की गति थी।

बुद्ध ने अपने अनुयायियों से आग्रह किया कि वे अंधविश्वास में न पड़ें, बल्कि अनुभव और विवेक से सत्य की परीक्षा करें। गांधीजी ने भी यही कहा — “अंधविश्वास से धर्म नहीं बनता, बल्कि विवेक से बनता है।”
इस प्रकार, दोनों ने तर्क, नैतिकता और आत्मज्ञान को मानवता की नींव माना।


दुःख और मुक्ति: भौतिकता से परे जीवन-दर्शन

बुद्ध ने चार आर्य सत्यों में कहा कि दुःख जीवन का सत्य है, परंतु उसका कारण तृष्णा है। जब मनुष्य अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण पाता है, तभी वह निर्वाण को प्राप्त कर सकता है।
गांधीजी ने भी यही कहा कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका लोभ और क्रोध है। उन्होंने भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर सादगी को अपनाया, क्योंकि उनके लिए जीवन का उद्देश्य आत्मशुद्धि था, न कि भोग।

उनके चरखे का प्रतीक केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता नहीं था, बल्कि यह आत्म-संयम और सरलता का प्रतीक भी था।
दोनों ने सिखाया कि भौतिक उन्नति तभी सार्थक है जब वह नैतिकता और करुणा से जुड़ी हो।


समाज और मानवता के प्रति दृष्टिकोण

बुद्ध का दर्शन व्यक्तिगत मोक्ष से आगे बढ़कर सामाजिक सद्भाव की ओर था। उन्होंने जाति-पांति और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाई।
गांधीजी ने इसी विचार को अपने हरिजन आंदोलन में रूपांतरित किया। उन्होंने कहा कि समाज तभी सशक्त होगा जब सबसे कमजोर व्यक्ति का कल्याण होगा — यही सर्वोदय का सिद्धांत था।

बुद्ध ने भिक्षु-संघ की स्थापना कर समानता और सेवा की भावना को संस्थागत रूप दिया।
गांधीजी ने आश्रमों के माध्यम से सामूहिक श्रम, शिक्षा और आत्मनिर्भरता की परंपरा को आगे बढ़ाया।

दोनों ने यह दिखाया कि आध्यात्मिकता और समाजसेवा एक-दूसरे से अलग नहीं, बल्कि एक ही मार्ग की दो धाराएँ हैं।


विश्वदृष्टि और आधुनिक प्रासंगिकता

आज का युग असहिष्णुता, हिंसा, और भौतिक अंधी दौड़ से भरा हुआ है। ऐसे में बुद्ध और गांधी दोनों के विचार पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं।
जहां बुद्ध का ध्यान और मैत्रीभाव व्यक्ति को भीतर से शांत करता है, वहीं गांधी का सत्याग्रह समाज को बाहर से बदलने की प्रेरणा देता है।

संयुक्त राष्ट्र ने 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित कर गांधी के माध्यम से बुद्ध की करुणा को वैश्विक मान्यता दी।
आज भी जब युद्ध, आतंक और असमानता की आवाजें गूंजती हैं, तो बुद्ध और गांधी के शब्द हमें याद दिलाते हैं —
“दुनिया को बदलने के लिए पहले अपने हृदय को बदलो।”


निष्कर्ष: दो युग, एक संदेश

बुद्ध और गांधी, युग भले ही अलग हों, लेकिन उनका संदेश एक ही था — सत्य, करुणा और अहिंसा ही मानवता की शाश्वत नींव हैं।
बुद्ध ने आत्मजागरण से संसार को जागरूक किया, गांधी ने उस जागरूकता को कर्म और सेवा में बदला।
एक ने आत्मा को शांति दी, दूसरे ने समाज को स्वराज दिया।

आज जब हम इन दोनों महापुरुषों को स्मरण करते हैं, तो हमें यह समझना चाहिए कि सच्चा धर्म उपदेशों में नहीं, बल्कि आचरण में होता है।
यदि हम उनके मार्ग पर चलें, तो न केवल भारत, बल्कि पूरा विश्व फिर से शांति, प्रेम और करुणा का घर बन सकता है।



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