“गांधी और स्त्री का स्वाभिमान”
“गांधी और स्त्री का स्वाभिमान”
गाँव की गलियों में,
जहाँ धूप की किरणें मिट्टी पर नाचती हैं,
वहाँ वो बैठे थे,
हाथ में चरखा, हृदय में करुणा।
उनकी दृष्टि हर स्त्री पर स्थिर थी,
न किसी को छोटा देखा, न कमजोर,
बल्कि शक्ति का प्रतीक हर हाथ,
जो जीवन बुनता, घर सजाता,
और समाज को आगे बढ़ाता।
वो कहते थे —
“स्त्री केवल गृहिणी नहीं,
वो राष्ट्र की आत्मा है।”
उनकी वाणी में शक्ति थी,
मधुरता थी,
और एक स्पष्ट संदेश —
“जो स्त्री स्वतंत्र है, वही देश स्वतंत्र है।”
गाँव की नारी जब चरखा चलाती,
वो मुस्कराते हुए कहते —
“यह केवल सूत नहीं,
यह आत्मसम्मान की डोर है।”
वो जानते थे,
कि शिक्षा बिना शक्ति अधूरी है,
और शक्ति बिना सम्मान अंधेरी है।
वो कहते थे —
“स्त्री का सम्मान सिर्फ शब्दों में नहीं,
कर्तव्यों और अधिकारों में दिखना चाहिए।”
उन्होंने देखा
गाँव की स्त्री कैसे कठिन परिश्रम करती,
सारे घर की जिम्मेदारी संभालती,
फिर भी समाज के नजरिए से अदृश्य रहती।
उनकी आँखें उसे कभी भूलती नहीं थीं,
और हर अवसर पर
उन्हें समान अधिकार दिलाने का प्रयास किया।
वो कहते थे —
“यदि माँ शिक्षित होगी,
तो पूरा परिवार शिक्षित होगा।”
वो स्त्री के हृदय को समझते थे,
उसकी पीड़ा, उसकी इच्छाएँ,
और उसकी क्षमताओं को पहचानते थे।
गाँधी ने स्त्रियों को शक्ति दी —
उन्हें चरखे, शिक्षा, स्वास्थ्य, और समाजिक अधिकारों के माध्यम से।
वो कहते थे —
“नारी को बाँधकर मत रखो,
बल्कि उसके पंख फैलने दो।”
उनकी शिक्षा न केवल किताबों में थी,
बल्कि व्यवहार और अनुभव में भी थी।
वो महिलाओं से कहते —
“सिर्फ अपनी सेवा मत करो,
समाज की सेवा करो।
तुम्हारा श्रम केवल घर तक सीमित नहीं,
देश के कल्याण तक बढ़ना चाहिए।”
उनके लिए स्त्री केवल सहारा नहीं,
निर्माता थी,
देश का आधार थी।
जब महिलाएँ सत्याग्रह में भाग लेतीं,
वो उनके साथ चलते,
कभी आदेश नहीं, हमेशा प्रेरणा।
वो कहते थे —
“यदि स्त्री सशक्त होगी,
तो समाज का हर दर्द कम होगा।”
गांधी के दृष्टिकोण में स्त्री
केवल गृहस्थ नहीं,
बल्कि नेता भी हो सकती थी।
वो कहते थे —
“जिसने अपने मन को नियंत्रित किया,
वह अपने अधिकारों का सही प्रयोग कर सकता है।”
स्त्री के लिए उनका आदर्श —
सादगी, संयम, और साहस।
वो कहते थे —
“यदि स्त्री निडर होगी,
तो कोई अन्याय टिक नहीं पाएगा।”
गाँधी की दृष्टि में
हर बालिका में शक्ति थी,
हर माँ में धैर्य,
और हर स्त्री में समाज बदलने की क्षमता।
वो कहते थे —
“महिला शिक्षा केवल आत्मनिर्भरता नहीं,
बल्कि समाज की रीढ़ है।”
उनका संदेश साफ था —
अपराध और उत्पीड़न को सहना नहीं,
बल्कि न्याय और समानता की ओर चलना।
गाँधी ने महिलाओं को शिक्षा दी,
सत्याग्रह की कला दी,
और आत्म-निर्भर बनने का मार्ग दिखाया।
उनका कहना था —
“कभी मत कहो मैं कमजोर हूँ,
क्योंकि भीतर से जो शक्ति आती है,
वो पहाड़ों को भी हिला सकती है।”
गाँधी का चरखा महिलाओं के लिए
सिर्फ कपड़ा बुनने का यंत्र नहीं,
स्वाभिमान और स्वतंत्रता का प्रतीक था।
वो कहते थे —
“जब स्त्री अपने कर्म से सम्मान पाएगी,
तब समाज सच्चे अर्थ में स्वतंत्र होगा।”
उनकी नीतियाँ, उनकी उपवास यात्रा,
सभी महिलाओं के लिए उदाहरण बने।
वो कहते थे —
“असली सेवा घर की नहीं,
समाज की करनी चाहिए।
तुम्हारे निर्णय, तुम्हारा ज्ञान
समाज को नई दिशा देंगे।”
गाँधी ने स्त्रियों को केवल अधिकार नहीं दिए,
बल्कि आत्मविश्वास और सम्मान दिया।
हर गाँव की माँ, बहन, बेटी में
उनकी प्रेरणा गूंजती रही।
वो कहते थे —
“स्त्री यदि जागी,
तो राष्ट्र जाग जाएगा।
अज्ञान और अन्याय का अंत होगा।”
गाँधी ने दिखाया —
सादगी, सत्य, और संयम से
स्त्री को कैसे सशक्त बनाया जा सकता है।
वो कहते थे —
“सत्य और अहिंसा का पालन हर महिला कर सकती है,
और समाज को बदल सकती है।”
उनका आदर्श जीवन स्त्री के लिए
न केवल मार्गदर्शन,
बल्कि प्रेरणा भी है।
गाँधी की दृष्टि में स्त्री —
समान, स्वतंत्र, साहसी और करुणामयी।
आज भी जब कोई महिला कदम बढ़ाती है,
किसी गाँव में शिक्षा देती है,
किसी उद्योग में काम करती है,
तो गांधी वहीं खड़े दिखते हैं,
मुस्कराते हुए कहते —
“यह मेरा भारत है,
यह मेरी स्त्री शक्ति है।”
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