चौरी-चौरा कांड और गांधीजी : अहिंसा की अग्निपरीक्षा

  


चौरी-चौरा कांड और गांधीजी : अहिंसा की अग्निपरीक्षा

भारत का स्वतंत्रता संग्राम केवल राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह नैतिकता, अनुशासन और विचारधारा की लड़ाई भी थी। इस संघर्ष में महात्मा गांधी ने जिस तरह अहिंसा को अपना सर्वोच्च सिद्धांत बनाया, वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा बन गया। लेकिन इस अहिंसा की परीक्षा तब हुई जब चौरी-चौरा कांड जैसी घटना घटित हुई, जिसने न केवल आंदोलन की दिशा बदली बल्कि पूरे राष्ट्र को सोचने पर विवश कर दिया।


चौरी-चौरा: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

यह घटना 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा कस्बे में घटी। उस समय भारत में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था। गांधीजी के नेतृत्व में पूरे देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध चल रहा था। लोग विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर रहे थे, सरकारी नौकरियां छोड़ रहे थे और अंग्रेजी अदालतों का विरोध कर रहे थे।

गोरखपुर के ग्रामीण भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे। किसानों में अत्याचार के खिलाफ गुस्सा था, क्योंकि अंग्रेजी शासन और स्थानीय पुलिस दोनों द्वारा ग्रामीणों पर दमन किया जा रहा था। चौरी-चौरा का यह आंदोलन भी उसी असंतोष की ज्वाला का परिणाम था।


घटना का क्रम

5 फरवरी की सुबह आंदोलनकारी किसान स्वदेशी और असहयोग आंदोलन के समर्थन में एक शांतिपूर्ण रैली निकाल रहे थे। जब यह रैली चौरी-चौरा थाने के पास पहुँची, तो पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की। पुलिस के अधिकारी गुआबचन सिंह ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। कई ग्रामीण वहीं घायल या मारे गए।

इस गोलीकांड से भीड़ का धैर्य टूट गया। गुस्से से भरी भीड़ ने पुलिस थाने को चारों ओर से घेर लिया और उसमें आग लगा दी। इस आग में 22 पुलिसकर्मी जलकर मर गए। यह घटना स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक हिंसक मोड़ के रूप में दर्ज हो गई।


गांधीजी की प्रतिक्रिया: आत्ममंथन और त्याग

जब गांधीजी को चौरी-चौरा की घटना की सूचना मिली, तो वे गहरे दुःख और आत्मग्लानि में डूब गए। उन्होंने कहा —

“मुझे यह असहनीय है कि मेरे ही देशवासी मेरे ही आंदोलन के नाम पर हिंसा करें।”

गांधीजी का विश्वास था कि अहिंसा केवल एक रणनीति नहीं, बल्कि जीवन का सिद्धांत है। उन्होंने यह महसूस किया कि जनता अभी उस आत्मसंयम और अनुशासन के स्तर तक नहीं पहुँची है, जो एक अहिंसक आंदोलन के लिए आवश्यक है।

इसलिए, गांधीजी ने साहसिक निर्णय लिया —
उन्होंने असहयोग आंदोलन को तुरंत स्थगित कर दिया

यह निर्णय कई राष्ट्रीय नेताओं — जैसे पंडित नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, और बाल गंगाधर तिलक के अनुयायियों — को खटक गया। उनका मानना था कि आंदोलन अपने चरम पर था, और इसे रोकना एक राजनीतिक भूल है। लेकिन गांधीजी ने कहा कि स्वराज की प्राप्ति से अधिक महत्वपूर्ण नैतिकता और आत्मशुद्धि है।


चौरी-चौरा कांड के परिणाम

चौरी-चौरा की घटना ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा बदल दी। इसके परिणामस्वरूप —

  1. असहयोग आंदोलन समाप्त हुआ।
    गांधीजी ने यह कहकर इसे रोका कि हिंसा से प्राप्त स्वतंत्रता अस्थायी और खोखली होगी।

  2. कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया।
    172 ग्रामीणों को गिरफ्तार किया गया और उन पर हत्या का मुकदमा चला। प्रारंभिक रूप से 19 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई, जिसे बाद में गांधीजी के प्रयासों से घटा दिया गया।

  3. गांधीजी का नैतिक कद और बढ़ा।
    हालांकि कई नेताओं ने उनके निर्णय का विरोध किया, परंतु जनता के बीच गांधीजी एक “सिद्धांतनिष्ठ नेता” के रूप में और ऊँचे उठे।

  4. स्वतंत्रता संग्राम का नया अध्याय आरंभ हुआ।
    गांधीजी ने इसके बाद रचनात्मक कार्यक्रम, खादी आंदोलन, स्वच्छता अभियान, और हरिजन उत्थान जैसे कार्यों पर बल दिया।


गांधीजी का संदेश: “अहिंसा ही सच्ची शक्ति है”

गांधीजी के लिए चौरी-चौरा केवल एक राजनीतिक हादसा नहीं था, बल्कि यह अहिंसा की अग्निपरीक्षा थी। उन्होंने यह सिद्ध किया कि किसी भी आंदोलन की सफलता उसके नैतिक आधार पर निर्भर करती है। उन्होंने लिखा —

“यदि हम हिंसा का सहारा लेंगे, तो हमारी स्वतंत्रता केवल अंग्रेजों के जाने तक सीमित रहेगी। लेकिन यदि हम अहिंसक रहेंगे, तो यह स्वतंत्रता स्थायी होगी।”


चौरी-चौरा कांड का ऐतिहासिक महत्व

आज चौरी-चौरा की घटना को भारतीय इतिहास में केवल एक हिंसक विद्रोह के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि यह उस क्षण के रूप में याद की जाती है जब भारत ने यह सीखा कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि नैतिक और आत्मिक भी होनी चाहिए।

गांधीजी ने इस घटना के बाद जो आत्मावलोकन किया, उसने भारत की स्वतंत्रता यात्रा को एक नई दिशा दी। यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि सच्ची क्रांति तलवार या बंदूक से नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और नैतिकता से आती है।


समापन : चौरी-चौरा से मिली सीख

चौरी-चौरा कांड हमें यह सिखाता है कि जब कोई राष्ट्र स्वतंत्रता की राह पर बढ़ता है, तो उसे केवल बाहरी दुश्मनों से नहीं, बल्कि अपनी भावनाओं, क्रोध और असंयम से भी लड़ना पड़ता है। गांधीजी ने यह दिखाया कि अहिंसा कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी ताकत है

आज जब हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं, तब यह याद रखना आवश्यक है कि चौरी-चौरा जैसे प्रसंग केवल इतिहास नहीं हैं — वे हमारे चरित्र की कसौटी हैं।


लेखक: रूपेश रंजन



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