किसी क्षेत्र का संसाधन सूचकांक: क्षमता और सतत विकास का वास्तविक मापदंड



किसी क्षेत्र का संसाधन सूचकांक: क्षमता और सतत विकास का वास्तविक मापदंड

प्रस्तावना

हर क्षेत्र — चाहे वह एक राज्य हो, जिला हो या पूरा देश — अपनी विशिष्ट प्राकृतिक, मानव और तकनीकी संसाधनों के कारण अलग पहचान रखता है। कहीं उपजाऊ भूमि है, कहीं खनिज संपदा, कहीं जल स्रोत, तो कहीं मानवीय कौशल और नवाचार की ऊर्जा।
परंतु किसी क्षेत्र की वास्तविक क्षमता केवल उसके संसाधनों की मात्रा से नहीं, बल्कि उनके संतुलित उपयोग और सतत प्रबंधन से निर्धारित होती है।

इसी उद्देश्य से विकसित हुआ है “संसाधन सूचकांक (Resource Index)”, जो किसी क्षेत्र की आर्थिक, मानवीय और पर्यावरणीय क्षमता को समग्र रूप से मापता है। जैसे GDP अर्थव्यवस्था को और HDI मानवीय विकास को दर्शाता है, वैसे ही संसाधन सूचकांक यह बताता है कि कोई क्षेत्र वास्तव में कितना सशक्त और आत्मनिर्भर है।


संसाधन सूचकांक क्या है?

संसाधन सूचकांक (Resource Index) एक समग्र संकेतक है जो किसी क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों की प्रचुरता (availability), पहुँच (accessibility) और उपयोग की दक्षता (efficiency) को मापता है।

इसमें पाँच प्रमुख घटक शामिल होते हैं:

  1. प्राकृतिक संसाधन – भूमि, जल, खनिज, वन, जैव विविधता और ऊर्जा क्षमता।
  2. मानव संसाधन – जनसंख्या संरचना, शिक्षा, कौशल और श्रम उत्पादकता।
  3. आर्थिक संसाधन – उद्योग, कृषि, वित्तीय पूँजी और आधारभूत ढाँचा।
  4. तकनीकी संसाधन – नवाचार, अनुसंधान, डिजिटल पहुँच और तकनीकी प्रगति।
  5. पर्यावरणीय संसाधन – पारिस्थितिक संतुलन, स्वच्छता, पुनर्नवीकरणीय ऊर्जा और सततता के मानक।

इस सूचकांक का उद्देश्य केवल यह बताना नहीं है कि किसी क्षेत्र में क्या उपलब्ध है, बल्कि यह भी कि उनका उपयोग कितना बुद्धिमत्ता और स्थायित्व के साथ किया जा रहा है।


संसाधन सूचकांक का महत्त्व

किसी भी विकास योजना के लिए संसाधनों का सही आकलन आवश्यक है। केवल आर्थिक आँकड़ों के आधार पर नीति बनाना पर्याप्त नहीं होता।
एक उच्च संसाधन सूचकांक इस बात का संकेत है कि क्षेत्र में संसाधन उपलब्ध भी हैं और उनका उपयोग भी दक्षता और सततता के साथ हो रहा है।
वहीं, निम्न सूचकांक यह दर्शाता है कि या तो संसाधन का दोहन अधिक हुआ है, या उनका उपयोग असमान रूप से हुआ है।

इसका महत्त्व इस प्रकार है:

  • यह क्षेत्रीय असमानताओं (Regional Disparities) की पहचान करता है।
  • यह निवेश और उद्योगों के लिए दिशा-निर्देश देता है।
  • यह पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को प्रोत्साहित करता है।
  • यह मानव विकास और संसाधन उपयोग के बीच संतुलन बनाता है।

संसाधन सूचकांक नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं और योजनाकारों के लिए एक दिशा-सूचक की तरह कार्य करता है।


संसाधन सूचकांक के प्रमुख घटक

1. प्राकृतिक संसाधन क्षमता (Natural Resource Potential)

इसमें भूमि की उपजाऊ क्षमता, सिंचाई सुविधाएँ, वन क्षेत्र, खनिज भंडार, और अक्षय ऊर्जा के स्रोत (जैसे सौर, पवन, जल) शामिल हैं।
जहाँ उपजाऊ भूमि और पर्याप्त जल है, जैसे गंगा का मैदानी क्षेत्र, वहाँ सूचकांक अधिक होगा। वहीं, सूखा या खनन-प्रधान क्षेत्र तब तक पीछे रह सकते हैं जब तक वे सतत प्रबंधन नहीं अपनाते।

2. मानव पूँजी (Human Capital)

किसी क्षेत्र का सबसे बड़ा संसाधन वहाँ के लोग हैं।
साक्षरता दर, शिक्षा की गुणवत्ता, स्वास्थ्य स्तर, जीवन प्रत्याशा, और रोजगार क्षमता इस घटक के मापदंड हैं।
सक्षम, स्वस्थ और शिक्षित जनसंख्या संसाधन उपयोग की दक्षता को कई गुना बढ़ा देती है।

3. आर्थिक एवं औद्योगिक आधार (Economic and Industrial Base)

यह दर्शाता है कि प्राकृतिक और मानव संसाधनों को आर्थिक मूल्य में कैसे परिवर्तित किया जा रहा है।
इसमें उद्योग, व्यापार, कृषि उत्पादन, परिवहन नेटवर्क और डिजिटल पहुँच का मूल्यांकन किया जाता है।

4. तकनीकी और अनुसंधान क्षमता (Technological and Research Capacity)

आधुनिक युग में किसी क्षेत्र की प्रगति तकनीकी ज्ञान और नवाचार पर निर्भर है।
यदि किसी क्षेत्र में तकनीकी संस्थान, अनुसंधान केंद्र और स्टार्टअप संस्कृति विकसित है, तो वह संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर सकता है।

5. पर्यावरणीय संतुलन (Ecological Balance)

संसाधनों का उपयोग तभी टिकाऊ है जब वह पुनर्नवीकरणीय और संरक्षणीय हो।
मृदा, जल, वन और वायु की गुणवत्ता का ध्यान रखना ही दीर्घकालिक विकास की गारंटी है।


संसाधन और विकास के बीच संबंध

किसी क्षेत्र की समृद्धि एकल संसाधन पर नहीं, बल्कि संसाधनों के परस्पर संतुलन और समन्वय पर निर्भर करती है।
यदि किसी क्षेत्र में खनिज हैं लेकिन कुशल श्रमिक नहीं, तो विकास रुक जाएगा।
इसी प्रकार, उपजाऊ भूमि यदि सिंचाई या बाज़ार से जुड़ी नहीं है, तो उसकी क्षमता सीमित रह जाएगी।

इसलिए विकास की असली कुंजी है — संसाधनों का एकीकृत और संतुलित उपयोग।


संसाधन सूचकांक और क्षेत्रीय नियोजन (Regional Planning)

आधुनिक योजना प्रक्रिया में Resource Mapping अत्यंत आवश्यक हो गया है।
यदि किसी जिले या राज्य का संसाधन सूचकांक तैयार किया जाए, तो निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं:

  • संसाधन-समृद्ध लेकिन आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र पहचाने जा सकते हैं।
  • अधिक दोहन वाले क्षेत्रों में पर्यावरणीय पुनर्संतुलन की योजना बनाई जा सकती है।
  • उद्योगों का वितरण संसाधनों की उपलब्धता के अनुसार किया जा सकता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय संसाधनों पर आधारित रोजगार सृजन संभव है।

भारत में उदाहरण के तौर पर झारखंड और छत्तीसगढ़ खनिजों से समृद्ध हैं, फिर भी मानव विकास के मामले में पीछे हैं।
एक प्रभावी संसाधन सूचकांक इन असमानताओं को उजागर कर उन्हें सुधारने का आधार बन सकता है।


सततता और भविष्य की दिशा

आज जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी के दौर में केवल “संसाधन दोहन” पर्याप्त नहीं है; अब आवश्यक है “संसाधन संरक्षण और पुनर्नवीकरण।”

भविष्य के संसाधन सूचकांक में निम्नलिखित मापदंड जोड़े जा सकते हैं:

  • क्षेत्रवार कार्बन उत्सर्जन
  • नवीकरणीय ऊर्जा का प्रतिशत
  • अपशिष्ट पुनर्चक्रण (Waste Recycling)
  • जल प्रबंधन दक्षता
  • जैव विविधता संरक्षण

इससे यह सूचकांक केवल आर्थिक क्षमता नहीं, बल्कि उत्तरदायी विकास का भी मापदंड बन जाएगा।


वैश्विक और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

विश्व स्तर पर कई समान सूचकांक मौजूद हैं:

  • Environmental Performance Index (EPI) — पर्यावरणीय प्रदर्शन का आकलन करता है।
  • Natural Capital Index — पारिस्थितिक तंत्र के आर्थिक मूल्य को मापता है।
  • Global Competitiveness Index — संसाधन दक्षता और नवाचार क्षमता को दर्शाता है।

भारत जैसे देशों के लिए एक राष्ट्रीय संसाधन सूचकांक बनाना आवश्यक है, जिससे न केवल आंतरिक नीतियों को दिशा मिलेगी, बल्कि वैश्विक मानकों से तुलना भी संभव होगी।


निष्कर्ष

संसाधन किसी भी क्षेत्र की आत्मा हैं — परंतु केवल उनके होने से नहीं, बल्कि उनके संतुलित और बुद्धिमान उपयोग से विकास संभव होता है।
संसाधन सूचकांक एक ऐसा दर्पण है जो यह दिखाता है कि हम अपने भूमि, जल, मानव और तकनीकी संसाधनों को कितना महत्व देते हैं और उन्हें कैसे संरक्षित करते हैं।

एक क्षेत्र जिसमें संसाधन प्रचुर हैं पर प्रबंधन कमजोर है, वह पिछड़ सकता है;
जबकि वह क्षेत्र जिसमें संसाधन सीमित हैं परंतु प्रबंधन कुशल है, वह तेजी से आगे बढ़ सकता है।

इस प्रकार, संसाधन सूचकांक केवल क्या हमारे पास है यह नहीं बताता, बल्कि हम उनका मूल्य और भविष्य कैसे तय कर रहे हैं यह भी दर्शाता है।
वास्तविक विकास वहीं है जहाँ संसाधन केवल संपत्ति नहीं, बल्कि संतुलन और समरसता के साधन बनते हैं।

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