सरदार वल्लभभाई पटेल : वह लौह पुरुष जिन्होंने भारत को एक सूत्र में बाँधा
सरदार वल्लभभाई पटेल : वह लौह पुरुष जिन्होंने भारत को एक सूत्र में बाँधा
भारत जब सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती मना रहा है, तो यह केवल एक व्यक्ति का स्मरण नहीं, बल्कि उस शक्ति, उस संकल्प और उस दृष्टि का उत्सव है जिसने आधुनिक भारत की नींव रखी। लौह पुरुष कहे जाने वाले पटेल न केवल स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे, बल्कि स्वतंत्र भारत के एकता के शिल्पकार भी थे।
अटल संकल्प और सेवा का जीवन
31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में जन्मे वल्लभभाई पटेल ने अपने जीवन की शुरुआत सादगी और अनुशासन से की। किसान परिवार से निकलकर वे पूरे देश के नेता बने। खेड़ा और बारडोली सत्याग्रह के माध्यम से उन्होंने न केवल ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी बल्कि जनता को यह विश्वास दिलाया कि एकजुट होकर कोई भी अन्याय झुकाया जा सकता है।
बारडोली के किसानों ने उनके नेतृत्व और निष्ठा के सम्मान में उन्हें सरदार की उपाधि दी — एक ऐसा संबोधन जो आज भी उनके नाम के साथ अमर है।
पटेल का जीवन इस विचार पर आधारित था कि राजनीतिक स्वतंत्रता तभी सार्थक है जब देश में एकता, आत्मनिर्भरता और सुदृढ़ प्रशासन हो। वे कर्मशीलता, ईमानदारी और दृढ़ निर्णय के प्रतीक थे।
राज्यों के एकीकरण के महान शिल्पकार
1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी — 560 से अधिक रियासतों का भारत में विलय। इन रियासतों में से प्रत्येक अपने हितों और झुकावों के आधार पर अलग निर्णय ले सकती थी। ऐसे कठिन समय में सरदार पटेल ने अद्भुत धैर्य, बुद्धिमत्ता और दृढ़ता से यह असंभव कार्य संभव कर दिखाया।
उन्होंने समझाने, बातचीत करने और जहाँ आवश्यकता पड़ी, वहाँ कठोर निर्णय लेने में कभी संकोच नहीं किया। जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर और मध्य भारत की कई रियासतों को जोड़कर उन्होंने भारत का राजनीतिक नक्शा एक किया।
उनके प्रयासों ने भारत को वह एकता दी जिसकी कल्पना पहले असंभव लगती थी। इसी कारण उन्हें भारत का बिस्मार्क भी कहा गया।
भारतीय गणराज्य के तीन स्तंभों में एक
गोपालकृष्ण गांधी ने कहा था —
“यदि भारत गणराज्य के जीवन में कोई रीढ़ है, तो वह अंबेडकर के संकल्प से आती है। यदि उसमें कोई आभा है, तो वह नेहरू की रोशनी से आती है। लेकिन यदि उसमें कोई अंतर्मन है, तो वह पटेल की सत्यनिष्ठ आत्मा से आता है।”
यह वाक्य सरदार पटेल के योगदान को बड़ी सटीकता से व्यक्त करता है। डॉ. भीमराव अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल — ये तीनों उस समय के ऐसे स्तंभ थे जिन्होंने भारत को दिशा, ढाँचा और आत्मा दी। अंबेडकर ने संविधान दिया, नेहरू ने दूरदर्शिता दी, और पटेल ने एकता और स्थिरता दी।
एक जीवंत स्मारक – स्टैच्यू ऑफ यूनिटी
गुजरात के केवड़िया में निर्मित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी — जो विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा है — सरदार पटेल के अटूट संकल्प का प्रतीक है। 182 मीटर ऊँची यह प्रतिमा केवल धातु और पत्थर का ढाँचा नहीं, बल्कि उस राष्ट्रीय कृतज्ञता की मूर्ति है जो हर भारतीय के हृदय में बसती है।
फिर भी, सरदार पटेल का असली स्मारक कोई मूर्ति नहीं, बल्कि वह एकजुट भारत है जिसे उन्होंने अपने कर्म और दृष्टि से गढ़ा।
आज के भारत में पटेल का संदेश
आज जब समाज में वैचारिक, भाषाई और क्षेत्रीय भेदभाव बढ़ रहा है, तब पटेल का संदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है। उन्होंने दिखाया कि राष्ट्रनिर्माण का आधार दृढ़ इच्छाशक्ति, स्पष्ट उद्देश्य और सामूहिक प्रयास में निहित है।
उनका जीवन यह सिखाता है कि सच्ची एकता केवल भूगोलिक नहीं होती — यह मन, भावना और उद्देश्य की एकता होती है। उनके प्रशासनिक अनुशासन, ईमानदारी और कार्य के प्रति निष्ठा आज भी भारत के नीति-निर्माताओं और नागरिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
भारत की एकता का प्रहरी
सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन इस सत्य का प्रमाण है कि एक व्यक्ति का संकल्प भी पूरे देश का भविष्य बदल सकता है। उन्होंने कभी सत्ता या प्रसिद्धि की चाह नहीं रखी; उनका एकमात्र ध्येय था — एक मजबूत और अखंड भारत।
उनकी 150वीं जयंती पर हमें यह याद रखना चाहिए कि उनका कार्य केवल इतिहास का अध्याय नहीं, बल्कि आज के भारत के लिए एक दिशा-सूचक है।
उनकी एकता, ईमानदारी और देशभक्ति आज भी भारत की आत्मा में जीवित हैं।
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