अगर गांधी भारत के प्रधानमंत्री होते



अगर गांधी भारत के प्रधानमंत्री होते

अगर महात्मा गांधी — सत्य, अहिंसा और सादगी के प्रतीक — स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री बनते तो देश कैसा होता? यह प्रश्न इतिहास की कल्पना को जीवंत कर देता है। आज़ादी के बाद जब नेहरू ने भारत को औद्योगिक और संसदीय लोकतंत्र की दिशा दी, तब गांधीजी ने स्वयं सत्ता से दूरी बना ली। किंतु यदि उन्होंने प्रधानमंत्री पद स्वीकार किया होता, तो भारत का चेहरा और चरित्र दोनों ही कुछ और होते — अधिक नैतिक, अधिक मानवीय और अधिक आत्मनिर्भर।


राजनीति का नैतिक आधार

गांधीजी के प्रधानमंत्री बनने पर राजनीति का स्वरूप ही बदल जाता। उनके लिए राजनीति सत्ता का माध्यम नहीं बल्कि सेवा और सत्य का मार्ग थी। वे मानते थे कि नैतिकता और राजनीति एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते। भ्रष्टाचार, स्वार्थ और लालच जैसे शब्द शायद शासन के शब्दकोश में ही नहीं होते।

गांधीजी की संसद बहस का नहीं, बल्कि लोकसेवा का केंद्र होती। सांसद और मंत्री जनता के सेवक कहलाते, शासक नहीं। वे स्वयं तीसरे दर्जे में यात्रा करते, सादे वस्त्र पहनते और सार्वजनिक धन का अत्यंत संयम से उपयोग करते। गांधीजी का शासन पारदर्शिता, सादगी और जवाबदेही पर आधारित होता — एक ऐसी राजनीति जो शक्ति नहीं, चरित्र पर टिकी होती।


ग्राम स्वराज — भारत का हृदय

गांधीजी का भारत गाँवों के बिना अधूरा था। उनके प्रधानमंत्री बनने पर विकास की दिशा शहरों से गाँवों की ओर मुड़ जाती। हर गाँव स्वयंभू गणराज्य होता — जहाँ किसान, कारीगर और महिलाएँ स्थानीय उत्पादन और स्वशासन के केंद्र बनते।

वे बड़े-बड़े कारखानों के बजाय खादी, हस्तकला और ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देते। चरखा केवल प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता का साधन बनता। इस नीति से शहरों और गाँवों के बीच की खाई कम होती और हर व्यक्ति अपने श्रम से सम्मानपूर्वक जीवन जीता।

शिक्षा में भी उनका नई तालीम मॉडल लागू होता — जहाँ काम के साथ सीखना, चरित्र निर्माण और सेवा-भावना को प्रमुखता दी जाती। शिक्षा का उद्देश्य रोजगार नहीं, बल्कि स्वावलंबन और समाज निर्माण होता।


अहिंसा — राष्ट्रीय नीति का आधार

प्रधानमंत्री गांधी भारत की विदेश नीति को अहिंसा और शांति कूटनीति पर आधारित करते। वे मानते थे कि हथियारों से नहीं, नैतिक शक्ति से राष्ट्र की रक्षा होती है। पाकिस्तान या चीन जैसे देशों से संघर्ष के समय वे संवाद, करुणा और विश्वास को प्राथमिकता देते।

उनकी दृष्टि में सच्ची विजय शत्रु को हराने में नहीं, बल्कि शत्रु को मित्र बनाने में थी। भारत वैश्विक मंच पर युद्ध की नहीं, बल्कि शांति की राजनीति का प्रतीक बनता — एक ऐसा राष्ट्र जो दुनिया को दिखाता कि नैतिकता भी एक शक्ति है।


मानवता से जुड़ी अर्थव्यवस्था

गांधीजी की अर्थनीति का लक्ष्य लाभ नहीं, बल्कि लोगों का कल्याण होता। वे कहते थे — “ऐसी संपत्ति का कोई मूल्य नहीं जो दूसरों के दुःख पर खड़ी हो।” इसलिए वे औद्योगिकीकरण को नियंत्रित रूप में अपनाते — ताकि विकास का फल समाज के हर वर्ग तक पहुँचे।

उनकी ट्रस्टीशिप की अवधारणा के अनुसार अमीर लोग अपने धन के मालिक नहीं, बल्कि समाज के ट्रस्टी (संरक्षक) होते। हर उद्योग, हर नीति का उद्देश्य होता — “सबका भला, किसी का अहित नहीं।”


सामाजिक सद्भाव और समानता

प्रधानमंत्री गांधी के शासन में जाति, धर्म और वर्ग के भेद मिटाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाते। वे कानून से अधिक मनुष्य के मन को बदलने पर विश्वास करते थे। अस्पृश्यता के विरुद्ध उनका अभियान केवल आंदोलन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक क्रांति होता।

वे हर धर्म के व्यक्ति को समान दृष्टि से देखते। उनके लिए भारत की शक्ति उसकी विविधता थी — वह विविधता जो प्रेम, करुणा और सह-अस्तित्व की भावना से जुड़ी है। गांधीजी का भारत वह होता जहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी एक परिवार के समान रहते।


सादगी का दर्शन

गांधीजी का प्रधानमंत्री जीवन विलासिता और दिखावे से मुक्त होता। वे शायद प्रधानमंत्री आवास में नहीं, किसी आश्रम में रहते। उनका पहनावा वही खादी का साधारण वस्त्र होता, भोजन सादा और जीवन संतुलित। उनके लिए सादगी कोई कमजोरी नहीं, बल्कि चरित्र की ऊँचाई थी।

उनका उदाहरण देश के नेताओं और नागरिकों दोनों के लिए प्रेरणा बनता — कि सच्ची उन्नति सुविधाओं से नहीं, बल्कि संयम, ईमानदारी और सेवा भावना से होती है।


निष्कर्ष: वह भारत जो हो सकता था

अगर गांधीजी भारत के प्रधानमंत्री होते, तो देश शायद कम औद्योगिक होता, पर अधिक मानवीय; कम समृद्ध होता, पर अधिक शांतिपूर्ण। वहाँ प्रतिस्पर्धा नहीं, सहयोग की भावना होती। शक्ति की जगह चरित्र को महत्व मिलता।

परंतु शायद गांधीजी स्वयं प्रधानमंत्री पद स्वीकार ही न करते। वे मानते थे कि सच्चा परिवर्तन सत्ता से नहीं, व्यक्ति के भीतर से आता है।

उनका भारत शासन से नहीं, बल्कि हर नागरिक की आत्मजागृति से बनता — एक ऐसा भारत जो आज भी उनके सिद्धांतों में जीवित है।



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