बिहार में अभी बहुत कुछ करना बाकी है



बिहार में अभी बहुत कुछ करना बाकी है

बिहार, भारत के पूर्वी भाग में स्थित एक प्राचीन और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य है। यह वही भूमि है जहाँ नालंदा विश्वविद्यालय जैसी शिक्षा का प्रतीक और मौर्य साम्राज्य जैसी राजनीतिक शक्ति का केंद्र कभी स्थापित था। परंतु आज का बिहार अपनी अपार संभावनाओं और लगातार जारी पिछड़ेपन के बीच एक विरोधाभास का उदाहरण है। पिछले दो दशकों में निश्चित रूप से कुछ प्रगति हुई है, लेकिन इसकी गति और गहराई यह दर्शाती है कि बिहार में अभी बहुत कुछ करना बाकी है।


1. आर्थिक विकास और औद्योगीकरण

सन् 2000 के बाद बिहार की अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार देखने को मिला है। राज्य का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) कभी-कभी राष्ट्रीय औसत से तेज़ गति से बढ़ा है। फिर भी यह विकास मुख्य रूप से कृषि और सरकारी व्यय पर निर्भर है। औद्योगिक विकास अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंच सका है क्योंकि बिजली आपूर्ति, निवेश, और बुनियादी ढाँचे की कमी ने इसे सीमित कर रखा है।
मुख्य उद्योगों के अभाव में बिहार का बड़ा श्रमिक वर्ग आज भी रोज़गार की तलाश में दिल्ली, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की ओर पलायन करता है। टिकाऊ आर्थिक विकास के लिए राज्य को औद्योगिक गलियारों का विकास, निजी निवेश को प्रोत्साहन, और कृषि-आधारित लघु उद्योगों को बढ़ावा देना होगा।


2. शिक्षा और मानव संसाधन विकास

शिक्षा बिहार के विकास का सबसे महत्वपूर्ण आधार है, लेकिन यही क्षेत्र सबसे अधिक सुधार की मांग करता है। साक्षरता दर जहाँ 2001 में लगभग 47% थी, वहीं आज यह 70% से ऊपर पहुँच चुकी है। परंतु शिक्षा की गुणवत्ता अब भी एक बड़ी चुनौती है। सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की अनुपस्थिति, खराब भवन, और सीमित संसाधन आम समस्या हैं। उच्च शिक्षा और तकनीकी संस्थानों की कमी के कारण बड़ी संख्या में छात्र अन्य राज्यों की ओर रुख करते हैं।
शिक्षक प्रशिक्षण को सशक्त बनाना, पाठ्यक्रम को आधुनिक बनाना, और कौशल-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना बिहार की युवा आबादी को सही दिशा दे सकता है।


3. कृषि और ग्रामीण विकास

बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि है, जिसमें लगभग 60% आबादी जुड़ी हुई है। यहाँ की उपजाऊ मिट्टी और जल संसाधन इसे प्राकृतिक रूप से समृद्ध बनाते हैं, फिर भी कृषि उत्पादकता कम है। छोटे जोत, वर्षा पर निर्भरता और पारंपरिक खेती की पद्धतियाँ इसकी प्रमुख बाधाएँ हैं।
राज्य को सिंचाई नेटवर्क का विस्तार करना, आधुनिक कृषि तकनीकें अपनानी, और किसानों को उचित बाज़ार तथा फसल बीमा की सुविधा देनी होगी। साथ ही बागवानी, मत्स्य पालन और डेयरी जैसे क्षेत्रों में विविधता लाना ग्रामीण आय बढ़ाने का प्रभावी तरीका हो सकता है।


4. बुनियादी ढाँचा और संपर्क व्यवस्था

बिहार में सड़क और बिजली जैसी सुविधाओं में सुधार हुआ है, लेकिन यह अब भी राष्ट्रीय औसत से पीछे है। ग्रामीण सड़कों और शहरी परिवहन में और सुधार की आवश्यकता है। बिजली की उपलब्धता बढ़ी है, परंतु स्थायी आपूर्ति अब भी कई जिलों में समस्या है।
उत्तर बिहार के क्षेत्र हर वर्ष कोसी और गंडक जैसी नदियों से आई बाढ़ से प्रभावित होते हैं। इसलिए बेहतर जल निकासी, बाढ़ नियंत्रण, और आपदा प्रबंधन तंत्र विकसित करना आवश्यक है।


5. स्वास्थ्य और सामाजिक संकेतक

स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बिहार में संतोषजनक नहीं है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार, मातृ मृत्यु दर और बाल पोषण के मामले में बिहार अब भी राष्ट्रीय औसत से नीचे है। कई गाँवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं हैं, और डॉक्टरों की भारी कमी बनी हुई है।
स्वास्थ्य ढाँचे में निवेश, दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना, और ग्रामीण इलाकों में टेलीमेडिसिन सेवाओं का विस्तार बिहार को अधिक सशक्त बना सकता है।


6. शासन और प्रशासनिक चुनौतियाँ

प्रशासनिक सुधारों के बावजूद बिहार में शासन की गुणवत्ता मिश्रित रही है। कानून-व्यवस्था और सरकारी तंत्र में सुधार तो हुआ है, लेकिन भ्रष्टाचार, नीतिगत अस्थिरता, और योजनाओं के असमान क्रियान्वयन जैसी समस्याएँ अब भी बनी हुई हैं।
स्थानीय शासन को सशक्त करना, पारदर्शिता बढ़ाना, और नागरिक सहभागिता को प्रोत्साहन देना प्रशासन में विश्वास बहाल करने के लिए आवश्यक है।


7. आगे का मार्ग

बिहार की चुनौतियाँ जटिल हैं, लेकिन संभावनाएँ असीमित हैं। यहाँ की युवा आबादी एक बड़ी पूंजी है, जिसे यदि सही शिक्षा, कौशल और रोजगार के अवसर दिए जाएँ, तो यह राज्य की सबसे बड़ी ताकत बन सकती है। औद्योगिकीकरण, कृषि, शिक्षा और सुशासन पर समान ध्यान देकर बिहार “विकासशील” से “परिवर्तनशील” राज्य में परिवर्तित हो सकता है।

बिहार में अभी बहुत कुछ करना बाकी है” यह आलोचना नहीं बल्कि एक सच्ची याद दिलाने वाली बात है — कि अब तक हुई प्रगति के बावजूद राज्य को अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने के लिए निरंतर प्रयास, ठोस नीतियाँ, और सहभागी विकास की आवश्यकता है। बिहार का भविष्य केवल सरकार पर नहीं, बल्कि उसके नागरिकों, उद्यमियों और समाज की सक्रिय भागीदारी पर भी निर्भर करता है।



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