भारतीय क्रिकेट का बदलता चेहरा: गलत फैसलों, अस्थिर नेतृत्व और अव्यवस्थित चयन की दर्दनाक कहानी
भारतीय क्रिकेट का बदलता चेहरा: गलत फैसलों, अस्थिर नेतृत्व और अव्यवस्थित चयन की दर्दनाक कहानी
भारतीय क्रिकेट ने दशकों में कई उतार–चढ़ाव देखे हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जो स्थिति बनी है, वैसी अव्यवस्थित और उलझी हुई कभी शायद ही देखने को मिली हो। एक समय था जब भारत टेस्ट क्रिकेट में अपनी पहचान, स्थिरता और मजबूत नेतृत्व के कारण दुनिया की सबसे मज़बूत टीमों में गिना जाता था। लेकिन धीरे-धीरे ऐसे फैसले लिए गए, जिन्होंने एक बेहद सफल टीम को अस्थिरता, अनिश्चितता और असंगति की ओर धकेल दिया।
यह गिरावट अचानक नहीं आई। यह शुरू हुई कुछ ऐसे निर्णयों से, जिन्होंने भारत की टेस्ट क्रिकेट की नींव को ही हिला दिया—वह नींव जिसे विराट कोहली, रवि शास्त्री और कई सीनियर खिलाड़ियों ने मिलकर खड़ा किया था।
यह ब्लॉग इसी यात्रा का विश्लेषण है—कैसे कप्तानी परिवर्तन, चयन में गड़बड़ियां, युवा खिलाड़ियों पर अनावश्यक दबाव और अनुभवी खिलाड़ियों की अनदेखी ने भारतीय क्रिकेट को एक मुश्किल मोड़ पर ला खड़ा किया।
1. शुरुआत की गलती: कप्तानी का गलत फैसला
इस अव्यवस्था की शुरुआत तब हुई जब रोहित शर्मा को सभी फॉर्मेट्स का कप्तान बना दिया गया।
रोहित की सफेद गेंद क्रिकेट में उपलब्धियाँ असाधारण हैं। वह एक बड़े खिलाड़ी हैं। लेकिन टेस्ट क्रिकेट में नेतृत्व की जरूरतें अलग होती हैं—और उस समय भारत के पास एक करिश्माई, सफल, और सिद्ध नेता पहले से मौजूद था—विराट कोहली।
क्यों यह बदलाव गलत समय पर हुआ
विराट कोहली के नेतृत्व में:
भारत ने दुनिया की नंबर 1 टेस्ट टीम का स्थान हासिल किया
ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में ऐतिहासिक जीतें मिलीं
भारतीय तेज़ गेंदबाजी इकाई दुनिया की सबसे खतरनाक बनी
टीम का फिटनेस लेवल नई ऊँचाइयाँ छूने लगा
खिलाड़ियों की भूमिकाएँ स्पष्ट थीं
मैदान पर एक पहचान, एक आग, एक आत्मविश्वास दिखाई देता था
ऐसे में कोहली को हटाना केवल कप्तान बदलना नहीं था—यह टीम की दिशा बदलना था। और वही हुआ। भारत एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गया जहां स्थिरता के बजाय अस्थिरता हावी होने लगी।
2. विराट–रोहित को समान टेस्ट खिलाड़ी मानने की भूल
भारत में लगातार यह नैरेटिव बनाया गया कि विराट और रोहित दोनों टेस्ट क्रिकेट में समान योगदान देने वाले खिलाड़ी हैं।
सच यह है कि:
विराट कोहली टेस्ट क्रिकेट में भारत के रीढ़ थे, जिन्होंने दुनिया की सबसे कठिन परिस्थितियों में प्रदर्शन किया।
रोहित शर्मा टेस्ट क्रिकेट में अच्छे थे, लेकिन ज्यादातर घरेलू पिचों पर। उनका विदेश रिकॉर्ड स्थायी रूप से मजबूत नहीं रहा।
इस “बराबर” मानने की ज़िद ने चयन और नेतृत्व को भ्रमित कर दिया। और इसका नुकसान टीम को हुआ।
एक और मौका, लेकिन फिर वही गलती
जब रोहित टेस्ट टीम से बाहर हुए और भारत के पास मौका था कि विराट को फिर से कप्तान बनाया जाए, जिसने भारत की टेस्ट क्रिकेट को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया था—तो चयनकर्ताओं ने फिर वही बहाना लगाया:
“हमें भविष्य देखना है”
लेकिन भविष्य देखने के नाम पर जो फैसले हुए, उनसे टीम और अधिक अंधेरे में चली गई।
3. अनुभवहीन भारतीय टेस्ट टीम: जब मूल स्तंभ गायब कर दिए गए
बिना किसी ठोस योजना के टीम से ऐसे खिलाड़ियों को हटा दिया गया या पीछे धकेल दिया गया, जिन पर भारत का टेस्ट क्रिकेट टिका हुआ था:
विराट कोहली
रोहित शर्मा
रविचंद्रन अश्विन
मोहम्मद शमी
अनुभव टेस्ट क्रिकेट का दिल होता है।
लेकिन भारत ने अपने अनुभव को ही किनारे लगा दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि:
टीम का संतुलन बिगड़ गया
बल्लेबाजी क्रम अस्थिर हो गया
गेंदबाजी की धार कम हो गई
युवा खिलाड़ियों पर दबाव बढ़ गया
और फिर हुआ सबसे बड़ा झटका
भारत, जो अपने घर में दुनिया की किसी भी टीम से डरता नहीं था, अपने ही घर में टेस्ट मैच हारने लगा—कुछ ऐसा जो दशकों में नहीं हुआ था।
भारत जो कभी घरेलू पिचों पर अजेय था, अब साधारण टीमों के सामने भी संघर्ष करता दिखने लगा।
4. युवा खिलाड़ियों का गलत प्रबंधन
भारत के पास प्रतिभा की कोई कमी नहीं। समस्या प्रतिभा की नहीं—प्रबंधन की है।
शुभमन गिल: एक गलत दिशा में धकेली गई प्रतिभा
गिल एक स्वाभाविक टेस्ट बल्लेबाज़ थे। उनके पास तकनीक, धैर्य और क्लास था।
लेकिन उन पर अनावश्यक बोझ डाल दिया गया:
उन्हें हर फॉर्मेट में खपाया गया
T20 में भी खेलने के लिए मजबूर किया गया
अधिक थकान और चोटें
प्रदर्शन पर दबाव
मानसिक तनाव
एक खिलाड़ी जिसे धैर्य से बढ़ाया जाना चाहिए था, उसे जल्दी-जल्दी उपयोग किया गया और वह अस्थिरता का शिकार हो गया।
5. गलत कप्तानी विकल्प: अनुभव को नजरअंदाज करना
रिषभ पंत को कप्तान बनाना एक बड़ा जोखिम था।
वह प्रतिभाशाली हैं, लेकिन कप्तानी के लिए जरूरी:
धैर्य
रणनीति
टेस्ट क्रिकेट की जटिल समझ
उनमें अभी विकसित ही हो रही थीं।
इस समय भारत के पास दो ज्यादा अनुभवी विकल्प थे:
रविंद्र जडेजा
के.एल. राहुल
लेकिन दोनों को नजरअंदाज कर दिया गया।
परिणामस्वरूप, युवा पंत पर अनावश्यक दबाव पड़ा, जिसके कारण उनका व्यक्तिगत खेल भी प्रभावित हुआ।
6. मोहम्मद शमी को बाहर करना—बिना किसी साफ कारण के
शमी न सिर्फ भारत के सबसे बेहतरीन टेस्ट गेंदबाजों में से एक हैं, बल्कि सबसे विश्वसनीय भी।
उनकी लाइन-लेंथ, रिवर्स स्विंग और सेशन-ब्रेकथ्रू देने की क्षमता भारत की टेस्ट सफलता की धुरी थी।
लेकिन बिना किसी स्पष्ट कारण के उन्हें बाहर कर दिया गया।
यह निर्णय न टीम की रणनीति के अनुकूल था, न भारत की गेंदबाजी संरचना के।
7. जसप्रीत बुमराह पर अत्यधिक दबाव
बुमराह को लगभग हर जगह इस्तेमाल किया गया:
नई गेंद
पुरानी गेंद
संकट के समय
बैक-अप गेंदबाज की कमी में
हर फॉर्मेट में लगातार
किसी भी तेज़ गेंदबाज की सीमाएँ होती हैं।
बुमराह बेहद प्रतिभाशाली हैं, लेकिन वे भी इंसान हैं।
ज़्यादा उपयोग का नतीजा:
चोटें
थकान
स्पीड में गिरावट
लंबे स्पेल में प्रभाव कम होना
यही वही गलतियाँ हैं जिन्हें क्रिकेट बोर्डों को सबसे पहले समझना चाहिए।
8. हर मैच में नए डेब्यू खिलाड़ी: एक पहचानहीन टीम
भारत ने एक समय में इतना प्रयोग शुरू कर दिया कि हर सीरीज़ में या तो नया खिलाड़ी लाया जाता था या पुराना हटाया जाता था।
किसी का बल्लेबाजी स्थान तय नहीं
किसी को पता नहीं अगला मैच खेलेगा या नहीं
गेंदबाजों का उपयोग असंतुलित
कप्तान के निर्णय असमंजस में
टीम कॉम्बिनेशन हर मैच में अलग
ऐसे माहौल में कोई भी टीम दुनिया में कहीं सफल नहीं हो सकती।
9. नतीजा: एक गिरावट जो टाली जा सकती थी
भारतीय टेस्ट टीम का मौजूदा संघर्ष किसी प्रतिभा की कमी का नतीजा नहीं है।
यह है:
गलत नेतृत्व
चयन की असंगति
अनुभवी खिलाड़ियों की अनदेखी
हर मैच में प्रयोग
युवाओं पर अनावश्यक दबाव
गेंदबाजी इकाई का टूटना
बल्लेबाजी क्रम का बिखराव
सबसे दुखद यह है कि यह गिरावट पूरी तरह रोकी जा सकती थी।
भारत के पास:
खिलाड़ी थे
नेतृत्व था
अनुभव था
गति थी
जो नहीं था वह था—स्पष्ट दृष्टिकोण।
10. अब भारतीय क्रिकेट को क्या करना चाहिए
अगर भारत को फिर से मजबूत होना है, तो उसे अपनी बुनियाद दोबारा बनानी होगी।
✔ अनुभवी नेतृत्व वापस लाना होगा
टेस्ट क्रिकेट विशेषज्ञ और शांत दिमाग वाले कप्तान की जरूरत है।
✔ सीनियर खिलाड़ियों को सम्मान और भूमिका लौटानी होगी
अनुभव सिर्फ एक विकल्प नहीं—एक आवश्यकता है।
✔ युवा खिलाड़ियों के साथ स्थिरता रखनी होगी
उन्हें समय, भूमिका और विश्वास देना होगा।
✔ तेज गेंदबाजों का सावधानी से उपयोग होना चाहिए
रोटेशन अनिवार्य है।
✔ चयन में पारदर्शिता होनी चाहिए
बिना कारण किसी खिलाड़ी को बाहर करने की प्रवृत्ति खत्म होनी चाहिए।
✔ एक स्थिर कोर टीम तैयार की जानी चाहिए
हर सीरीज़ में टीम बदलने से सिर्फ अस्थिरता आएगी।
निष्कर्ष: भारतीय क्रिकेट को अपनी पहचान वापस पानी होगी
भारत की ताकत हमेशा उसकी स्पष्टता, अनुशासन और पहचान रही है।
आज ये तीनों चीज़ें कमजोर पड़ गई हैं।
लेकिन यह कहानी खत्म नहीं हुई है।
भारत के पास आज भी दुनिया का सबसे बड़ा प्रतिभा भंडार है।
सही फैसलों, बेहतर नेतृत्व, और स्थिर टीम संरचना के साथ भारत फिर से दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टेस्ट टीम बन सकता है।
लेकिन इसके लिए ज़रूरी है—ईमानदारी से अपनी गलतियों को पहचानना और उन्हें दोबारा न दोहराना।
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