भारत: एक सार्वभौमिक विचार — जो धर्म की सीमाओं से कहीं आगे है
भारत: एक सार्वभौमिक विचार — जो धर्म की सीमाओं से कहीं आगे है|
भारत केवल एक देश नहीं है। यह केवल राजनीतिक सीमाओं का नाम नहीं, न ही केवल राज्यों, भाषाओं या समुदायों का समूह है। भारत एक जीवित विचार है, एक बहती हुई चेतना है, जो सदियों से अनगिनत धाराओं के संगम से निर्मित हुई है।
इसी गहरे भाव को व्यक्त करती है पंक्ति—
“अंगिनत धाराओं का संगम, मिलन तीर्थ संदेश।”
अक्सर इस विचार को हिंदू धर्म से जोड़ दिया जाता है। लेकिन यह जोड़ भी लोगों की संकीर्ण समझ का परिणाम है। समस्या हिंदू विचार की नहीं है, समस्या इस विचार को केवल ‘धर्म’ के रूप में देखने की है।
वरना, यह विचार स्वयं में व्यापक, गहरा और अत्यंत सार्वभौमिक है।
इस विचार को “हिंदू धर्म” कहना सीमित नहीं करता। सीमित दृष्टि तब बनती है जब लोग इसे केवल धार्मिक चश्मे से देखते हैं।
इसी गलतफहमी से बचने के लिए इस अनंत विचार को “भारत” के रूप में समझना अधिक उचित है — क्योंकि भारत वह व्यापक छाया है जो हर धारा, हर परंपरा, हर जीवन-दर्शन और हर समुदाय को समाहित करती है।
भारत: एक विचार, कोई संकीर्ण परिभाषा नहीं
भारत शब्द में स्वयं में सभ्यता का विस्तार है। यह प्रतीक है—
विविध विचारों का स्वागत
सह-अस्तित्व की परंपरा
समन्वय का दर्शन
और जीवन जीने की वह शैली, जिसमें भिन्नता भी सौंदर्य है
यह वही प्राचीन “हिंदू” सभ्यतागत विचार है—लेकिन आधुनिक दुनिया अक्सर किसी भी गहरे दर्शन को केवल धर्म की श्रेणी में डाल देती है।
इसीलिए, इसे भारत का विचार कहना इसे संकीर्णता से मुक्त करता है और अधिक सार्वभौमिक बना देता है।
“भारत” इसे सार्वभौमिक क्यों बनाता है
जब हम “भारत” कहते हैं, तो हम किसी धर्म, संप्रदाय या विशेष समूह की बात नहीं करते। हम बात करते हैं—
सभ्यता की पहचान
सांस्कृतिक स्मृति
जीवन-दर्शन
और विविधता को अपनाने वाली सोच
भारत वह छाता है जिसके नीचे यह पूरा विचार बिना गलतफ़हमी के समझा जा सकता है।
यह विचार समाहित करता है—
आध्यात्मिकता बिना दबाव के
आस्था बिना सीमा के
परंपराएँ बिना भेदभाव के
ज्ञान बिना कठोरता के
इसीलिए यह विचार सार्वभौमिक बन जाता है—सभी के लिए खुला, सभी के लिए स्वीकृत।
भारत का मूल भाव
अनगिनत संस्कृतियाँ
अनगिनत पूजा-पद्धतियाँ
अनगिनत दर्शन
अनगिनत जीवन-शैलियाँ
ये सभी धाराएँ एक जगह मिलती हैं—
भिन्नताओं को मिटाने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें सम्मान देने के लिए।
यही है भारत का आत्मा-स्वरूप।
लेबल्स से परे एक विचार
जब हम इसे “हिंदू धर्म” कहते हैं, तो बहुत-से लोग इसे केवल एक धार्मिक पहचान समझ लेते हैं।
लेकिन जैसे ही हम कहते हैं कि यह विचार भारत का है, यह सबके लिए खुल जाता है—
हर समुदाय
हर आस्था
हर संस्कार
हर व्यक्ति जो समन्वय के इस बृहद् विचार से जुड़ाव महसूस करता है
इस तरह यह विचार संकीर्ण नहीं, सार्वभौमिक बन जाता है।
निष्कर्ष
भारत भूगोल भर नहीं है।
भारत राजनीति भर नहीं है।
भारत कोई एक धर्म तक सीमित नहीं है।
भारत वह सनातन विचार है—मानवता की एकता का, विविधता में सामंजस्य का, सह-अस्तित्व के अनंत संदेश का।
यह विचार न कभी रुका, न कभी खत्म हुआ—यह निरंतर बहता रहा, संगम बनता रहा, बढ़ता रहा।
भारत एक देश से पहले एक चेतना है।
एक संदेश है।
एक संगम है—अनगिनत धाराओं का।
Comments
Post a Comment