सूरज का उगना ईश्वर है और सूरज का अस्त शैतान का परिचायक — एक दार्शनिक दृष्टि
सूरज का उगना ईश्वर है और सूरज का अस्त शैतान का परिचायक — एक दार्शनिक दृष्टि
✍️ रूपेश रंजन
प्रस्तावना
जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है — प्रकाश और अंधकार का चक्र।
हर दिन जब सूरज उगता है, तो वह केवल आकाश को नहीं, बल्कि मनुष्य के भीतर की चेतना को भी प्रकाशित करता है।
और जब वही सूरज डूबता है, तो उसके साथ बहुत कुछ अंधेरे में समा जाता है — आशा, ऊर्जा, और कभी-कभी विश्वास भी।
यही कारण है कि कहा गया है —
“सूरज का उगना ईश्वर है, और सूरज का अस्त शैतान का परिचायक।”
यह वाक्य कोई धार्मिक परिभाषा नहीं, बल्कि जीवन का आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक सत्य है।
सूरज का उगना — ईश्वर का प्रतीक
हर सुबह जब पूर्व दिशा में प्रकाश फैलता है,
तो लगता है जैसे ईश्वर स्वयं लौट आया हो —
रात की नीरवता और भय को मिटाने।
सूरज का उगना जीवन का पुनर्जन्म है।
यह बताता है कि चाहे अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो,
प्रकाश फिर आएगा।
- यह आशा देता है — कि हर असफलता के बाद सफलता संभव है।
- यह शक्ति देता है — कि हर रात के बाद एक नई शुरुआत होती है।
- यह प्रेरणा देता है — कि जो बीत गया, उसे छोड़कर आगे बढ़ो।
ईश्वर को सृष्टि का सृजनकर्ता कहा गया है,
और सूरज का उगना उसी सृजन का प्रत्यक्ष रूप है।
यह ईश्वर की सबसे सुंदर घोषणा है —
कि जीवन अभी बाकी है।
सूरज का अस्त — शैतान का परिचायक
संध्या का समय जब सूर्य धीरे-धीरे क्षितिज में डूबता है,
तो उसके साथ एक अजीब सी उदासी उतरती है।
वही क्षण है जब मनुष्य भीतर से अकेला महसूस करने लगता है।
सूरज का अस्त होना प्रतीक है —
अंधकार के आगमन का,
भ्रम, भय और असमंजस के बढ़ने का।
यही वह समय है जब मनुष्य के भीतर का शैतान
धीरे-धीरे सिर उठाता है।
- अंधकार में डर बढ़ता है।
- डर से संदेह बढ़ता है।
- संदेह से गलतियाँ होती हैं।
और यहीं से शैतान का साम्राज्य शुरू होता है —
मनुष्य के भीतर ही।
प्रकृति के इस चक्र में छिपा संदेश
ईश्वर और शैतान दो अलग शक्तियाँ नहीं हैं,
बल्कि एक ही जीवन के दो पहलू हैं।
सूरज का उगना और अस्त होना,
जीवन के उत्थान और पतन का संकेत है।
जब हम प्रकाश को स्वीकारते हैं,
तो हम ईश्वर के साथ होते हैं।
और जब हम अंधकार में डूब जाते हैं,
तो हम शैतान के प्रभाव में आ जाते हैं।
यह ब्रह्मांड का नियम है —
जहाँ प्रकाश है, वहाँ जीवन है;
जहाँ अंधकार है, वहाँ भ्रम है।
इसीलिए हमें हर शाम के बाद भी
अगली सुबह की प्रतीक्षा करनी चाहिए —
क्योंकि हर अंधकार अस्थायी है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
मानव मस्तिष्क भी प्रकृति की तरह काम करता है।
सुबह के समय सेरोटोनिन और डोपामिन का स्तर बढ़ता है,
जो खुशी और उत्साह का स्रोत हैं —
इसलिए सुबह हमें ईश्वर का अनुभव होता है।
शाम और रात के समय
तनाव और थकावट बढ़ जाती है,
जो कॉर्टिसोल और मेलाटोनिन से जुड़ी होती है —
इसीलिए शाम के बाद उदासी,
अकेलापन और भय अधिक महसूस होता है।
यानी सूरज का उगना केवल भौतिक घटना नहीं,
बल्कि यह हमारी मानसिक ऊर्जा का पुनर्जागरण है।
आध्यात्मिक निष्कर्ष
ईश्वर और शैतान हमारे बाहर नहीं,
हमारे भीतर ही रहते हैं।
जब हमारे विचार प्रकाशमान होते हैं,
हम ईश्वर के साथ होते हैं।
जब हमारे विचार अंधेरे में डूबते हैं,
हम शैतान के साथ चलने लगते हैं।
सूरज हर दिन यही सिखाता है —
कि गिरना भी प्रकृति का हिस्सा है,
पर हर गिरावट के बाद उठना ही ईश्वर का चमत्कार है।
उपसंहार
सूरज का उगना हमें बताता है — उम्मीद अभी बाकी है,
और सूरज का अस्त हमें याद दिलाता है — संघर्ष अनिवार्य है।
जो व्यक्ति सुबह के प्रकाश को आत्मसात करता है,
वह दिनभर अपने भीतर ईश्वर को जीवित रखता है।
और जो शाम के अंधेरे से डरता नहीं,
वह जानता है कि अगली सुबह
फिर वही ईश्वर लौट आएगा —
प्रकाश लेकर, जीवन लेकर,
और एक नई शुरुआत की प्रेरणा लेकर।
— रूपेश रंजन
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