लौह पुरुष — सरदार पटेल
🪶 लौह पुरुष — सरदार पटेल
धरती पर जब छाया अंधकार,
भारत था टूटा, था लाचार,
तब उभरा एक दृढ़ व्यक्तित्व,
जिसने जगाया राष्ट्रीय विचार।
वह किसान पुत्र, सरल हृदय,
पर भीतर था अग्नि समान,
लौह-पुरुष बनकर उठा,
सपनों में था हिंदुस्तान।
न धन की चाह, न यश का मोह,
बस कर्मपथ उसका धर्म,
नम्र वाणी, दृढ़ संकल्प,
कर्तव्य ही उसका कर्म।
उसने नहीं कहा — “मैं नेता”,
कहा — “मैं देश का सेवक हूँ,”
जन-जन में शक्ति भरने वाला,
मैं भारत का एक नागरिक हूँ।
छोटे गाँव के उस बालक में,
था पर्वत-सा आत्मविश्वास,
लोहे-सी इच्छाशक्ति ने,
कर दी कठिन राह भी आस।
अंग्रेज़ी सत्ता थर्राई थी,
जब उसने सत्य का बिगुल बजाया,
बारडोली की पवित्र धरा पर,
अहिंसा का अमर दीप जलाया।
वह वकील था न्याय का,
पर जनता का था प्रहरी भी,
उसकी दृष्टि में भारत बसा,
उसका जीवन जनता की गाथा थी।
न कोई भय, न कोई छल,
वह बोलता था सच्चाई,
उसकी हर बात में झलकती,
कर्मयोग की परछाई।
उसने कहा — “देश नहीं झुकेगा,”
जब तक एकता की लौ जले,
हर दिल में भारत बस जाए,
हर सांस में मातृभूमि बहे।
उसके ललाट पर तेज झलके,
मानो शौर्य की दीपशिखा,
वह नायक था जन-जन का,
भारत की आत्मा की प्रतिध्वनि था।
रियासतें थीं बिखरी हुईं,
भय में थीं, संदेह में लीन,
तब उसने थामा विश्वास का ध्वज,
और जोड़ा भारत भूमि एक त्रीन।
कूटनीति की गूढ़ कला से,
वह बन गया एकता का दूत,
कठोर वाणी में ममता थी,
और सत्य में उसका सूत।
तीन सौ रियासतें झुक गईं,
जब उसने मुस्कुराकर कहा,
“यह भूमि हमारी माता है,
इससे बड़ा नहीं कोई महा।”
लौह था उसका चरित्र,
पर मन था नर्म कमल समान,
वह अनुशासन का प्रतीक बना,
राष्ट्र का गर्व, भारत का मान।
उसने कहा — “अखंड रहो,”
“भेदभाव से ऊपर उठो,”
“हिंदुस्तान का सपना यही,
सत्य और श्रम से जुड़ो।”
उसके कदमों में दृढ़ता थी,
उसकी वाणी में गूंज थी,
वह तूफानों से न डरा,
क्योंकि भीतर जन-शक्ति थी।
वह गांधी के सत्य का साथी,
नेहरू के स्वप्न का प्रहरी,
डॉ. अंबेडकर के संविधान में,
उसकी दूरदर्शी दृष्टि गहरी।
उसने भारत को आकार दिया,
भूगोल में ही नहीं, भावना में भी,
उसकी एकता की नींव पड़ी,
हर गांव, हर जनगणना में भी।
आज भी जब देखो नक्शे को,
तो हर सीमा उसका आशीष है,
हर प्रांत का मिलन, हर भाषा,
उसकी इच्छा का परिणाम विशेष है।
वह कहता था — “कर्तव्य पहले,
अधिकार पीछे रह जाएं,”
“राष्ट्र का हित ही सर्वोपरि है,”
यही उसकी सीख बताएं।
सरदार का जीवन अनुशासन था,
नम्रता में भी कठोरता थी,
वह लौह कवच समान खड़ा,
पर भीतर निर्मल कोमलता थी।
वह किसान का सच्चा मित्र,
श्रमिक का साथी सच्चा,
देशभक्ति उसकी धड़कन थी,
उसका मन था निस्वार्थ अच्छा।
उसने कहा — “हम एक हैं,”
“भाषा-धर्म का अंतर भूलो,”
“देश सबसे ऊपर है,”
“राष्ट्र के हित में जीवन झूलो।”
वह चला गया, पर रह गया,
हर दिल में उसकी गूंज,
वह लौह नहीं, वह भावना है,
जो करती भारत को पूज।
जब हम देखें सरदार सरोवर,
या “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” का तेज,
तो लगता है — वह खड़ा अभी भी,
भारत का रखवाला, अजेय, अनीज।
वह खड़ा है गर्व से ऊँचा,
पर्वतों से भी महान,
हर श्वास कहती — “जय भारत,”
हर हृदय कहता — “जय सरदार।”
उसकी दृष्टि में जो शक्ति थी,
वह युगों तक प्रेरणा देगी,
भारत की हर पीढ़ी को,
कर्तव्य का स्मरण कराएगी।
वह कहेगा — “न झुको कभी,”
“न टूटो भय के प्रहार से,”
“एकता ही भारत की जान,
यह सन्देश रहे संसार से।”
सरदार पटेल — नाम नहीं,
एक विचार, एक दीपक है,
जो जलता है हर देशभक्त के,
मन-मंदिर के भीतर दीपक है।
Comments
Post a Comment