पंडित नेहरू — स्वप्नों का शिल्पकार
🌸 पंडित नेहरू — स्वप्नों का शिल्पकार
वह सुबह की पहली किरण थे,
जिसने अंधियारा चीर दिया,
गुलामी की नींद में सोए भारत को,
नए युग का नाद दिया।
कश्मीरी मिट्टी की गोद में,
एक बालक ने स्वप्न सजाया,
जिसके हृदय में भारत बसा,
जिसने जीवनभर देश को चाहा।
शिक्षा की गंगा में डूबकर,
लाया वह ज्ञान का प्रकाश,
विदेशी धरती से लौट आया,
भारत का पुत्र, साहस-विशाल।
नेहरू — वह नाम नहीं केवल,
वह विचारों का प्रवाह थे,
वह बुद्धि और भावना के संगम में,
मानवता के गवाह थे।
उनकी आँखों में भविष्य था,
उनके शब्दों में राष्ट्र था,
हर कदम पर निर्माण था,
हर स्वप्न में विकास था।
उन्होंने कहा — “हम आजाद हैं,”
“पर काम बहुत बाकी है,”
“जहाँ गरीबी, वहाँ क्रांति होगी,”
“जहाँ मेहनत, वहीं साखी है।”
वह गांधी के सत्य के साथी,
अहिंसा के विश्वासी थे,
पर आधुनिक भारत के शिल्पी,
विज्ञान में भी रसवासी थे।
उसने बोया पंचशील का बीज,
जहाँ शांति का वटवृक्ष उगा,
“नहीं युद्ध, न शस्त्र, न घृणा,”
“बस संवाद से सब कुछ सधा।”
हर मंच पर उसकी आवाज़,
थी भारत की आत्मा की पुकार,
“हम विश्व में शांति चाहेंगे,”
“नहीं किसी का हम अपकार।”
लाल गुलाब उसकी पहचान,
निर्मल मन की वह निशानी,
हर बालक के चेहरे पर मुस्कान,
नेहरू की सच्ची कहानी।
“चाचा नेहरू” — प्यार का नाम,
हर दिल का वह अरमान,
वह बच्चों में देखता भारत,
वह बालपन में देखता भविष्य महान।
उसकी दृष्टि में खेत थे,
कारखाने और विद्यालय भी,
वह कहता था — “राष्ट्र तभी बढ़ेगा,
जब मेहनत होगी हर हाल भी।”
हर युवा में वह चेतना जगाए,
हर मन में उजाला फैलाए,
वह कहता — “सोचो, पढ़ो, बढ़ो,”
“कर्म ही जीवन का गीत बनाए।”
वह इतिहास से भविष्य गढ़ता,
वह पत्थर में भी फूल खिलाता,
हर असंभव को संभव करता,
हर सपने को आकार देता।
लाल किले की प्राचीरों पर,
उसकी आवाज़ अमर है आज,
“ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” की प्रतिध्वनि,
अब भी करती भारत को ताज।
उसकी मुस्कान में नीति थी,
उसके मौन में करुणा थी,
उसकी आंखों में सागर था,
जिसमें समाई मानवता थी।
उसने कहा — “राष्ट्र वही महान,
जो सबको साथ लेकर चले,”
“जहाँ कोई भूखा न सोए,
जहाँ हर आत्मा उजाला मिले।”
वह धर्मों के पार का मानव था,
वह मानवता का सेनानी था,
वह कहता — “भारत की आत्मा,
सहअस्तित्व की कहानी था।”
वह विज्ञान का राही था,
वह प्रगति का प्रहरी था,
हर बाँध, हर इस्पात-धारा,
उसके सपनों का झरी था।
भाखड़ा, हिराकुंड, दामोदर,
उसकी सोच की मिसालें हैं,
वह कहता — “ये आधुनिक तीर्थ हैं,”
“जहाँ श्रम और शक्ति की ज्वालाएं हैं।”
वह अंतरिक्ष की ओर देखता,
तो मन में एक दीप जलता,
वह चाहता था भारत उठे,
जहाँ ज्ञान का सूरज खिलता।
वह कवि भी था, चिंतक भी,
वह युग-निर्माता, युग-दृष्टा भी,
उसके शब्दों में जीवन था,
उसके कर्मों में सृष्टि थी।
नेहरू का भारत — स्वप्न अनोखा,
जहाँ न्याय और समानता हो,
जहाँ हर मनुष्य स्वतंत्र जीए,
जहाँ हर हृदय में करुणा हो।
वह कहता — “राष्ट्र एक परिवार है,”
“भेदभाव की दीवार गिराओ,”
“प्रेम के वृक्ष को सींचो,
और मानवता का गीत गाओ।”
उसकी नीतियाँ, उसकी दृष्टि,
आज भी दिशा देती हैं,
हर नई सुबह में उसकी आत्मा,
फिर जीवन का मंत्र देती है।
जब भी कोई बालक हँसता है,
किताबें लेकर चलता है,
वह कहीं आसमान में मुस्कुराता,
अपने गुलाब को सँभालता है।
नेहरू — वह अमर स्वप्न हैं,
जो भारत के हृदय में जीवित हैं,
हर युग में, हर पल में,
उसके विचार नवीन हैं।
वह चला गया, पर रुका नहीं,
उसकी छाया अब भी यहाँ,
हर प्रगति, हर उन्नति में,
उसका नाम है — नेहरू महान।
उसने कहा — “शांति रखो,”
“ज्ञान की जोत जलाए रखो,”
“जहाँ मेहनत हो, प्रेम हो,”
“वहीं सच्चा भारत बनाए रखो।”
नेहरू — एक व्यक्तित्व नहीं,
एक संस्कृति का संकल्प हैं,
जो सिखाते — “सपने देखो,”
और उन्हें साकार करो अंतर्मन से।
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