यदि गांधीजी का जन्म न हुआ होता



यदि गांधीजी का जन्म न हुआ होता

कहा जाता है कि कुछ लोग केवल इतिहास में जन्म नहीं लेते, बल्कि इतिहास स्वयं बन जाते हैं। महात्मा गांधी ऐसे ही व्यक्तित्व थे जिन्होंने न केवल भारत का मार्ग बदला, बल्कि पूरे विश्व को यह सिखाया कि सत्य और अहिंसा ही मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है। परंतु कल्पना कीजिए, यदि गांधीजी का जन्म ही न हुआ होता — तो भारत, उसकी आज़ादी, और मानवता का स्वरूप कैसा होता? यह विचार ही मानो इतिहास के नैतिक अध्याय को मिटा देने जैसा है।

अहिंसा का दीपक बुझ जाता

यदि गांधीजी का जन्म न हुआ होता, तो भारत की स्वतंत्रता संग्राम शायद अधिक हिंसक रूप ले लेता। प्रथम विश्वयुद्ध की विभीषिका के बाद यदि भारत का संघर्ष किसी नैतिक नेतृत्व से वंचित रहता, तो अंग्रेज़ों के विरुद्ध आंदोलनों में प्रतिशोध और रक्तपात की लहर फैल सकती थी।
गांधीजी ने हमें सिखाया कि अत्याचार का उत्तर हिंसा नहीं, बल्कि सत्याग्रह है। उनके बिना यह संभव था कि भारत की आज़ादी विभाजन, हिंसा और घृणा की नींव पर खड़ी होती — और यह घाव शायद पीढ़ियों तक न भरता।

राजनीतिक परिदृश्य बदल जाता

गांधीजी के बिना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस शायद अभिजात वर्ग की पार्टी बनी रहती। गांधीजी ने इसे गाँव-गाँव तक पहुँचाया, आम जनता का आंदोलन बनाया। उन्होंने किसानों, मजदूरों, स्त्रियों और अस्पृश्यों को भी स्वतंत्रता संग्राम का भागीदार बनाया।
यदि वे न होते, तो यह आंदोलन जनता की बजाय कुछ नेताओं तक सीमित रह जाता। देश आज़ाद तो शायद हो जाता, पर उसकी आत्मा एकजुटता और नैतिकता से रहित होती।

सामाजिक सुधारों का दीप अधूरा रह जाता

गांधीजी केवल राजनेता नहीं, बल्कि समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अस्पृश्यता के विरुद्ध आवाज़ उठाई, चरखे को सम्मान का प्रतीक बनाया, स्त्रियों की भागीदारी को बढ़ावा दिया, और ग्राम स्वराज की अवधारणा दी।
यदि वे न होते, तो दलितों के लिए मंदिरों के द्वार देर से खुलते। श्रम को सम्मान नहीं मिलता। भारत का विकास केवल औद्योगिक और राजनीतिक होता, पर उसकी आत्मा आध्यात्मिक रूप से कमजोर रह जाती।

विश्व मंच पर नैतिकता का अभाव होता

गांधीजी केवल भारत के नहीं, बल्कि पूरे विश्व के नैतिक शिक्षक थे। मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं ने उनसे प्रेरणा पाई।
यदि गांधीजी न होते, तो दुनिया में अहिंसक प्रतिरोध का यह ज्वलंत उदाहरण कभी न मिलता। 20वीं सदी के युद्धों और संघर्षों में मानवता की वह आवाज़ गायब होती जो कहती है — “आँख के बदले आँख पूरे विश्व को अंधा बना देती है।”

आध्यात्मिक शून्यता

गांधीजी ने सिखाया कि साधन भी उतने ही पवित्र होने चाहिए जितना लक्ष्य। उनके बिना स्वतंत्रता का अर्थ केवल राजनीतिक होता, नैतिक नहीं।
गांधीजी का जीवन एक सतत प्रयोग था — सत्य, प्रेम, और आत्मशुद्धि का प्रयोग। उनके अभाव में भारत शायद तेज़ी से बढ़ता, पर दिशा खो देता। क्योंकि दिशा वही देता है जो भीतर से जागृत हो।

निष्कर्ष : अनुपस्थिति में उपस्थिति

यदि गांधीजी का जन्म न हुआ होता, तो भारत को स्वतंत्रता तो शायद मिल जाती, पर आत्मा नहीं। चरखा राष्ट्र का प्रतीक न बनता, और नमक सत्याग्रह जैसा आंदोलन कभी जन्म न लेता।
गांधीजी ने सिद्ध किया कि एक व्यक्ति का नैतिक बल पूरे राष्ट्र की दिशा बदल सकता है।
उनकी अनुपस्थिति की कल्पना ही यह दर्शाती है कि उनकी उपस्थिति कितनी गहरी थी।

महात्मा गांधी व्यक्ति नहीं, एक विचार थे — और विचार कभी मरते नहीं। उनका जन्म भले एक युग में हुआ हो, पर उनकी आत्मा युगों तक जीवित रहेगी।



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