“भूख और धर्म”
“भूख और धर्म”
धर्म सुन्दर है, मधुर है,
पर भूख के सामने मौन हो जाता है।
उपदेश के शब्द, जब आँतों की कराह सुनते हैं,
तो अपनी दिव्यता खो बैठते हैं।
भूखे पेट में ब्रह्म नहीं बसता,
वहाँ केवल रोटी का प्रतिध्वनि गूंजता है।
जहाँ धुएँ से आँखें जलती हैं,
वहाँ ध्यान की ज्योति नहीं जल पाती।
कर्मकांड की वेदी पर
यदि अन्न न हो, तो आस्था भी क्षीण पड़ जाती है।
भिक्षु का मन भी तब डगमगाता है,
जब कण-कण को तरसता शरीर सत्य की खोज में भटकता है।
धैर्य का पाठ, भूखे को मत पढ़ाओ,
वह पहले ही समय की क्रूर परीक्षा में बैठा है।
धर्म वही जो भूख समझे,
और रोटी को भी पूजा का अंश माने।
क्योंकि—
जब पेट शांत होता है,
तभी मन स्थिर होता है;
और जब मन स्थिर होता है,
तभी आत्मा ईश्वर से संवाद करती है।
रूपेश रंजन
Beautiful lines❤️
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DeleteThis sentence really grabbed me, I love the way u structured it♥️♥️
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