माँ — प्रेम का शाश्वत प्रतीक
माँ — प्रेम का शाश्वत प्रतीक
दुनिया के हर शब्दकोश में यदि कोई शब्द सबसे कोमल, सबसे पवित्र और सबसे प्रभावशाली है, तो वह है — “माँ”। यह शब्द अपने आप में एक संसार है। माँ केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक भावना है — जो हमारे पहले साँस लेने से लेकर अंतिम साँस तक हमारे साथ रहती है।
माँ वह है जो हमें जन्म देती है, अपने प्रेम से सींचती है, और हर कठिनाई में ढाल बनकर खड़ी रहती है। उसकी ममता की कोई सीमा नहीं होती। उसका प्यार न तो समय से बंधा है, न परिस्थितियों से। वह बिना किसी अपेक्षा के देती रहती है — दिन-रात, हर पल, हर सांस।
माँ की गोद ही बच्चे का पहला विद्यालय होती है। बोलना सीखने से पहले हम उसके स्पर्श को समझते हैं। प्रार्थना करना सीखने से पहले हम उसकी दुआओं का असर महसूस करते हैं। उसकी बातें सरल होती हैं, पर उनमें जीवन की गहराई छिपी होती है। उसका मौन भी सिखा देता है कि धैर्य और प्रेम ही जीवन की सच्ची शक्ति हैं।
समय बीतता है, बच्चे बड़े हो जाते हैं, घर से दूर चले जाते हैं। पर माँ की सोच, माँ की चिंता, और माँ का स्नेह कभी दूर नहीं जाता। वह हमेशा हमारे पीछे खड़ी रहती है — हमारे लिए प्रार्थना करती है, हमारे लिए मुस्कुराती है, और हमारी सफलता में सबसे पहले गर्व से आँसू बहाती है।
जब दुनिया पीठ मोड़ ले, तब माँ साथ खड़ी रहती है। जब सब शक करें, वह भरोसा रखती है। जब आशा टूटने लगती है, तो वही अपनी ममता से उसे फिर से जोड़ देती है। माँ की ताकत उसके शरीर में नहीं, उसके प्रेम में बसती है — एक ऐसा प्रेम जो न थकता है, न टूटता है, न मिटता है।
आज की इस तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में, जब हम सब व्यस्त हो गए हैं, तो अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि हमारे हर कदम के पीछे किसी माँ का त्याग, किसी माँ का आशीर्वाद, और किसी माँ का इंतज़ार है।
माँ को किसी महंगे उपहार की ज़रूरत नहीं होती — उसे चाहिए केवल हमारा सम्मान, हमारा प्यार और हमारा समय। एक बार "माँ, मैं आपसे प्यार करता हूँ" कह देना उसके लिए पूरे संसार से बड़ा तोहफ़ा है।
आइए, हम माँ के इस अनमोल अस्तित्व का सम्मान करें। न केवल मदर्स डे पर, बल्कि हर दिन। क्योंकि सच तो यह है —
जन्नत अगर कहीं है, तो वह माँ के चरणों में ही है।
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