मैं सदा श्रीरामकृष्ण परमहंस जैसा बनना चाहता हूँ



मैं सदा श्रीरामकृष्ण परमहंस जैसा बनना चाहता हूँ

इस धरती पर अनेक महापुरुष आए — किसी ने ज्ञान दिया, किसी ने सेवा का संदेश, किसी ने त्याग की राह दिखाई। परंतु कुछ ही ऐसे हुए जिन्होंने स्वयं को पूर्णतः ईश्वर को समर्पित कर दिया। श्रीरामकृष्ण परमहंस ऐसे ही दिव्य पुरुष थे। वे केवल एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व नहीं, बल्कि ईश्वर-साक्षात्कार का सजीव उदाहरण हैं। जब भी मैं उनके जीवन को पढ़ता या उनके उपदेशों पर चिंतन करता हूँ, मेरे भीतर एक पवित्रता का भाव जागृत होता है।
मैं सदा उनके जैसा बनना चाहता हूँ — उनके रूप में नहीं, बल्कि उनकी आत्मा के स्वरूप में — निर्मल, निष्कपट, ईश्वर-प्रेम में डूबा हुआ और समर्पण से भरा हुआ।


सरलता में ईश्वर का दर्शन

रामकृष्ण परमहंस का जीवन पूर्णतः सरल था। उन्होंने कभी धन या प्रसिद्धि की चाह नहीं रखी, परंतु उनका हृदय दिव्य आनंद से भरा रहता था। वे हर वस्तु में, हर व्यक्ति में, हर अनुभव में ईश्वर को देखते थे।
आज के युग में, जहाँ भौतिक सफलता को ही जीवन का मापदंड मान लिया गया है, वहाँ उनका जीवन यह सिखाता है कि सबसे बड़ा धन संतोष है।
उनकी तरह बनना मतलब — मन को लोभ और अहंकार से मुक्त करना, हर व्यक्ति में ईश्वर का अंश देखना और हर परिस्थिति में कृतज्ञ रहना।


भक्ति और समर्पण का मार्ग

श्रीरामकृष्ण मुझे सबसे अधिक उनके समर्पण के कारण प्रेरित करते हैं। उन्होंने ईश्वर को तर्क या ग्रंथों से नहीं, बल्कि प्रेम से खोजा। माँ काली के प्रति उनकी भक्ति पूजा मात्र नहीं, एक जीवंत संबंध थी।
जब मैं पढ़ता हूँ कि वे माँ के दर्शन के लिए किस प्रकार रोते थे, किस प्रकार समाधि में चले जाते थे, तब मुझे एहसास होता है कि भक्ति का अर्थ है — पूर्ण समर्पण

उनकी तरह बनना मतलब यह है कि ईश्वर से इतना प्रेम किया जाए कि संसार की कोई भी वस्तु उस प्रेम से अधिक प्रिय न लगे। स्वयं को पूरी तरह उस परमशक्ति के हवाले कर देना — यही सच्चा धर्म है।


सब धर्मों में एकता का अनुभव

श्रीरामकृष्ण ने सभी धर्मों का अनुभव किया — हिंदू, मुस्लिम, ईसाई — और कहा, “सब मार्ग उसी एक परमात्मा की ओर जाते हैं।”
उनकी यह अनुभूति आज के समय में और भी प्रासंगिक है, जब मानवता धर्म और जाति के नाम पर बँटी हुई है।
उनकी तरह बनना मतलब — सबको स्वीकार करना, सबसे प्रेम करना, और सबमें ईश्वर को देखना।
यदि मैं अपने जीवन में उस एकता की एक झलक भी ला सकूँ, तो जीवन सार्थक हो जाएगा।


अहंकार से मुक्त जीवन

रामकृष्ण परमहंस में अहंकार नाम की कोई चीज़ नहीं थी। वे कभी अपने को गुरु या ज्ञानी नहीं कहते थे। वे हमेशा कहते — “मैं तो माँ का बच्चा हूँ।”
आज के युग में, जहाँ हर व्यक्ति अपनी पहचान और उपलब्धियों का प्रदर्शन करता है, उनकी विनम्रता एक दिव्य शक्ति के समान है।
उनकी तरह बनना मतलब है — “मैं” को मिटाकर “हम” को अपनाना।
जब व्यक्ति अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित कर देता है, तब उसका हर कदम एक प्रार्थना बन जाता है।


हर क्षण में आनंद

रामकृष्ण का जीवन आनंद से भरा था। चाहे वे समाधि में हों या अपने शिष्यों के साथ हँस रहे हों — उनका हृदय सदैव प्रसन्न रहता था।
मैं भी वैसा ही आनंद पाना चाहता हूँ — जो बाहरी वस्तुओं से नहीं, भीतर के ईश्वर से जन्म लेता है।
उनकी तरह मुस्कुराना, प्रेम से भरा रहना, और जीवन को ईश्वर का खेल मानकर जीना — यही मेरी आकांक्षा है।


उनका संदेश मेरे लिए

हर बार जब मैं उनके शब्द पढ़ता हूँ —
“जितना तुम ईश्वर से प्रेम करोगे, उतना ही तुम्हें हर प्राणी में वही ईश्वर दिखाई देगा।”
तो मुझे लगता है कि जीवन का उद्देश्य केवल जीना नहीं, बल्कि ईश्वर को जानना है।

उनकी तरह बनना मतलब — हर जीव में करुणा देखना, हर कार्य में भक्ति का भाव रखना, और हर क्षण को प्रार्थना बना देना।
ईश्वर केवल मंदिर में नहीं, बल्कि हर हृदय में बसता है — यही उनकी शिक्षा थी।


निष्कर्ष : जिस पथ पर मैं चलना चाहता हूँ

मुझे पता है कि श्रीरामकृष्ण परमहंस जैसा बनना आसान नहीं है। इसके लिए त्याग चाहिए, आत्म-संयम चाहिए, और सबसे अधिक चाहिए श्रद्धा
पर यदि मैं उनके मार्ग पर एक कदम भी चल सकूँ, तो वह जीवन का सबसे बड़ा वरदान होगा।

मैं उनकी तरह चमत्कार नहीं करना चाहता — मैं केवल उनकी आत्मा के समान बनना चाहता हूँ:
उनकी सादगी, उनका समर्पण, और उनका प्रेम अपने भीतर लाना चाहता हूँ।

यदि मैं सबमें ईश्वर को देख सकूँ, सबसे प्रेम कर सकूँ, और हर दिन को ईश्वर को समर्पित कर सकूँ —
तो शायद उसी क्षण मैं श्रीरामकृष्ण परमहंस के चरणों के समीप पहुँच जाऊँगा —
उस दिव्य बालक के, जो माँ काली की गोद में आज भी मुस्कुरा रहा है।




Comments