कुछ राजनीतिक दलों द्वारा गांधीजी के नाम का दुरुपयोग

कुछ राजनीतिक दलों द्वारा गांधीजी के नाम का दुरुपयोग

महात्मा गांधी — एक ऐसा नाम जो सत्य, अहिंसा और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक है — आज भी समय, स्थान और राजनीति से परे है। लेकिन विडंबना यह है कि जिस नाम ने कभी भारत को एकता के सूत्र में बाँधा था, आज वही नाम कुछ राजनीतिक दलों द्वारा सत्ता पाने के औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। गांधीजी के नाम और विचारों का यह राजनीतिक दुरुपयोग केवल इतिहास से खिलवाड़ नहीं, बल्कि भारत की नैतिक आत्मा के साथ भी विश्वासघात है।


गांधीजी किसी पार्टी के नहीं, मानवता के थे

गांधीजी कभी पारंपरिक अर्थों में ‘राजनीतिज्ञ’ नहीं थे। वे नैतिकता पर आधारित राजनीति के पक्षधर थे। उन्होंने कहा था — “राजनीति का धर्म के बिना कोई अर्थ नहीं।”
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे भले ही कांग्रेस से जुड़े रहे हों, पर उन्होंने हमेशा कहा कि उनकी निष्ठा किसी संस्था से नहीं, सत्य से है।

उन्होंने कहा था — “मैं केवल अपने विश्वासों का प्रतिनिधि हूं।”
यानी वे किसी पार्टी या विचारधारा के बंधन में नहीं थे।

पर आज के समय में राजनीतिक दल गांधीजी की छवि का उपयोग केवल नैतिकता का दिखावा करने के लिए करते हैं। जो व्यक्ति जीवनभर एकता और प्रेम का संदेश देता रहा, उसका नाम आज विभाजन और वोट की राजनीति में इस्तेमाल किया जा रहा है।


गांधीजी की छवि का राजनीतिक उपयोग

कई राजनीतिक दल गांधीजी का नाम लेकर खुद को विनम्र, देशभक्त या नैतिक साबित करने की कोशिश करते हैं, जबकि उनके कर्म अक्सर गांधीजी के मूल्यों के विपरीत होते हैं।

  • अहिंसा, जो गांधीजी का मूल सिद्धांत था, उसी का हवाला देने वाले कई नेता हिंसक बयानबाजी करते हैं।
  • सत्य, जिसे गांधीजी ने ईश्वर कहा, वही राजनीतिक भाषणों और प्रचारों में सबसे बड़ी कमी बन गया है।
  • समानता और सद्भाव, जिनके बिना गांधीजी भारत की आत्मा को अधूरा मानते थे, उन्हें आज की राजनीति में अक्सर भुला दिया गया है।

गांधीजी का नाम लेकर अगर उनके आदर्शों को कुचला जाए, तो यह वैसा ही है जैसे दीपक की पूजा करके उसकी लौ बुझा देना।


“गांधीगिरी” से आगे – गांधी का सही अर्थ समझना

आज के दौर में गांधीजी के विचारों को कई बार केवल “गांधीगिरी” जैसे शब्दों में सीमित कर दिया गया है। फिल्में, विज्ञापन और भाषणों में उनका नाम लिया जाता है, पर उनकी गहराई को नहीं समझा जाता।

समस्या गांधीजी को याद करने में नहीं है, समस्या है उन्हें चुनिंदा रूप से याद करने में।
राजनीतिक दल तब गांधी को उद्धृत करते हैं जब वह उनके हित में हो, और जब गांधी का संदेश उन्हें चुनौती देता है, तब वे मौन हो जाते हैं।


गांधीजी का संदेश वोट बैंक के लिए नहीं था

गांधीजी ने कभी सत्ता या वोट के लिए संघर्ष नहीं किया। उनका स्वराज केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं था, बल्कि नैतिक और आत्मिक स्वतंत्रता का संदेश था।
उनका मानना था कि सच्चा नेता वही है जो जनता का सेवक हो, स्वामी नहीं।

पर आज कई दल गांधीजी के नाम का उपयोग सहानुभूति और वैधता पाने के लिए करते हैं, जबकि उनके आचरण में त्याग या सेवा की भावना दिखाई नहीं देती।
गांधीजी के लिए नेतृत्व का अर्थ था — सेवा, नहीं सत्ता; त्याग, नहीं प्रचार।


गांधी को राजनीति से बचाना होगा

गांधीजी को किसी राजनीतिक दल की जरूरत नहीं; बल्कि राजनीतिक दलों को गांधी की जरूरत है।
आज की पीढ़ी को यह समझना होगा कि गांधीजी का नाम लेना और उनके मूल्यों को जीना, दोनों अलग बातें हैं।

अगर हम सचमुच गांधीजी को सम्मान देना चाहते हैं, तो हमें —

  • सार्वजनिक जीवन में सत्य को पुनर्जीवित करना होगा,
  • अहिंसा को केवल शब्द नहीं, नीति बनाना होगा,
  • और सेवा को स्वार्थ से ऊपर रखना होगा।

शिक्षा संस्थानों, नागरिक संगठनों और आम लोगों को मिलकर गांधीजी की उस नैतिक आत्मा को पुनर्जीवित करना होगा, जिसे राजनीति ने धूमिल कर दिया है।


निष्कर्ष

महात्मा गांधी कोई ब्रांड नहीं हैं जिन्हें प्रचार में इस्तेमाल किया जाए; वे एक दीपस्तंभ हैं जिन्हें आचरण से जलाए रखना चाहिए।
उनका नाम चुनावी पोस्टरों को सजाने के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र की अंतरात्मा को जगाने के लिए है।

राजनीतिक दल उनके चित्र उधार ले सकते हैं, लेकिन उनकी आत्मा उधार नहीं ले सकते।
गांधीजी की विरासत किसी सरकार या पार्टी की नहीं — पूरी मानवता की है।

जब तक कोई व्यक्ति सत्य, करुणा और न्याय के लिए बिना स्वार्थ के खड़ा रहेगा — गांधीजी जीवित रहेंगे, राजनीति के दुरुपयोग से परे।

गांधी को अपनाया जा सकता है, इस्तेमाल नहीं।


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