उम्मीद ईश्वर है और डर शैतान — एक आत्मिक दृष्टिकोण

उम्मीद ईश्वर है और डर शैतान — एक आत्मिक दृष्टिकोण
लेखक: रूपेश रंजन


प्रस्तावना

मनुष्य का जीवन दो भावनाओं के इर्द-गिर्द घूमता है — उम्मीद और डर। यही दो शक्तियाँ हमारे हर निर्णय, हर कर्म और हर सोच को प्रभावित करती हैं। जहाँ उम्मीद जीवन में प्रकाश फैलाती है, वहीं डर उस प्रकाश को निगलने की कोशिश करता है। यही कारण है कि कहा गया है —
“उम्मीद ईश्वर है और डर शैतान।”

यह कोई धार्मिक वाक्य मात्र नहीं, बल्कि एक गहरी दार्शनिक सच्चाई है। यह वाक्य हमें बताता है कि जीवन में सकारात्मकता ही सृजन है, और नकारात्मकता ही विनाश।


उम्मीद: ईश्वर का रूप

उम्मीद वह दीपक है जो अंधेरे में भी जलता रहता है। जब सब कुछ खो जाए, तब भी यह मन के किसी कोने में जलता रहता है और कहता है — “कल बेहतर होगा।”
यह वही शक्ति है जिसने अंधेरे युगों में भी मानवता को जीवित रखा।

  • एक किसान बीज बोते समय इसी उम्मीद से धरती जोतता है कि बरसात होगी और फसल उगेगी।
  • एक माँ इसी उम्मीद से अपने बच्चे को पालती है कि वह एक दिन सफल होगा।
  • एक रोगी इसी उम्मीद से दवा लेता है कि वह ठीक हो जाएगा।

उम्मीद ईश्वर का रूप इसलिए है क्योंकि यह सृजन करती है, यह आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। यह मनुष्य के भीतर छिपे ईश्वरीय तत्व को जगाती है — करुणा, धैर्य और विश्वास।


डर: शैतान का रूप

डर वह अंधकार है जो आत्मा के प्रकाश को ढँक देता है। यह हमें हमारे वास्तविक स्वरूप से दूर कर देता है। डर हमें सीमित करता है, बाँधता है, और हमारे भीतर की क्षमता को नष्ट करता है।

  • डर से इंसान झूठ बोलता है।
  • डर से इंसान हिंसा करता है।
  • डर से इंसान अपने ही सगे से द्वेष रखता है।

शैतान कभी बाहर नहीं होता; वह हमारे मन में छिपा डर है जो हमें कमजोर बनाता है। जब डर बढ़ता है, तब ईश्वर की आशा कम होती जाती है। और जब उम्मीद प्रबल होती है, तो शैतान जैसा डर स्वयं मिट जाता है।


जीवन का द्वंद्व: उम्मीद बनाम डर

हर दिन, हर क्षण यह संघर्ष चलता रहता है — ईश्वर और शैतान का नहीं, बल्कि उम्मीद और डर का।
जब हम असफल होते हैं, तो डर कहता है — “अब कुछ नहीं होगा।”
पर उम्मीद फुसफुसाती है — “एक बार और कोशिश कर।”
यही क्षण तय करता है कि हम किस मार्ग पर चलेंगे — ईश्वर के प्रकाश की ओर या शैतान के अंधकार की ओर।


उम्मीद का विज्ञान और मनोविज्ञान

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी उम्मीद को सबसे बड़ा प्रेरक तत्व माना गया है। यह डोपामिन जैसे रसायनों को सक्रिय करती है, जो मस्तिष्क में प्रसन्नता और उत्साह भरते हैं।
वहीं डर कॉर्टिसोल और एड्रेनालिन को बढ़ाता है, जिससे तनाव और असंतुलन बढ़ता है।
यानी ईश्वर और शैतान का यह युद्ध वास्तव में हमारे मस्तिष्क में चलता है —
एक तरफ उम्मीद का उजाला और दूसरी तरफ डर का अंधेरा।


धार्मिक दृष्टिकोण

प्रत्येक धर्म में किसी न किसी रूप में यही विचार मिलता है —

  • गीता कहती है: “न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।” अर्थात हर क्षण कर्म होता है, और कर्म का मूल विश्वास है।
  • इस्लाम में कहा गया है कि “जो ईश्वर पर भरोसा रखे, उसके लिए कोई भय नहीं।”
  • बाइबिल में लिखा है: “Fear not, for I am with you.”

इन सबका सार यही है कि उम्मीद रखना ईश्वर पर भरोसा रखना है, और डरना ईश्वर से दूर जाना।


व्यवहार में उम्मीद को जगाने के उपाय

  1. हर दिन कृतज्ञता का अभ्यास करें – जो है, उसका धन्यवाद करें।
  2. डर को नाम दें और स्वीकार करें – जब हम डर को पहचानते हैं, वह छोटा हो जाता है।
  3. सकारात्मक संगति रखें – जो लोग उम्मीद जगाते हैं, वे आपके जीवन में प्रकाश लाते हैं।
  4. ध्यान और प्रार्थना करें – यह मन के भीतर ईश्वर से संवाद का माध्यम है।
  5. असफलता को सीख मानें – यही उम्मीद का सबसे मजबूत रूप है।

निष्कर्ष

जीवन के हर मोड़ पर हमें एक चुनाव करना होता है — उम्मीद या डर।
जो उम्मीद चुनता है, वह ईश्वर का मार्ग चुनता है।
जो डर में जीता है, वह शैतान की गिरफ्त में है।

इसलिए हमेशा याद रखें —
“जहाँ उम्मीद है, वहाँ ईश्वर है;
जहाँ डर है, वहाँ शैतान।”

क्योंकि जीवन वही नहीं जो हमने पाया,
बल्कि वह है जो हम उम्मीद में देख पाते हैं।


✍️ लेखक – रूपेश रंजन

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