महात्मा गांधी — मानवता का पथिक

महात्मा गांधी — मानवता का पथिक

वह चल पड़ा था नंगे पाँव,
सत्य की मशाल लिए,
झूठ के अंधियारे जग में,
एक दीपक-सा जल लिए।

न था ताज, न कोई सिंहासन,
न कोई सेना, न राजदंड,
फिर भी उसकी वाणी में था,
धरती का अमर प्रबंध।

वह बोला, जैसे गीता बोले,
जैसे बुद्ध का शांति गीत,
हर शब्द में नैतिकता थी,
हर कर्म में जग का हित।

उसने देखा भूखे भारत को,
नंगे तन, नंगे पाँव,
फिर भी मुस्कुराया करुणा से,
किया सबको प्रेम का दांव।

अंधविश्वास के जंगल में,
वह सत्य की रेखा खींच गया,
मनुष्यता के मंदिर में,
ईश्वर का नाम सींच गया।

चरखे की धुन पर उसने,
आत्मनिर्भरता का गीत गाया,
हर बुनाई में स्वराज्य था,
हर धागे में भारत समाया।

सादा जीवन, ऊँचे विचार,
उसका था जीवन का सार,
वह खुद मिटा, मगर सिखा गया,
कैसे होता है उद्धार।

अंग्रेज़ी सत्ता डोले थी,
जब सत्याग्रह की गूंज उठी,
लाठी चली, तो आत्मा बोली,
"अहिंसा ही सच्ची शक्ति।"

न वह डरा, न झुका कहीं,
न हिंसा के पथ पर चला,
उसकी निश्चल आँखों में,
विश्व का कल्याण खिला।

उसने कहा, “घृणा मत करना,”
“प्यार से जीतो हर द्वेष,”
दुनिया ने देखा — बापू में,
शांति का अनुपम परिवेश।

हरिजन के हृदय में उसने,
ईश्वर का दर्शन पाया,
अस्पृश्यता की बेड़ी तोड़,
समानता का दीप जलाया।

उसका आश्रम तपोवन था,
जहाँ श्रम ही पूजा थी,
जहाँ नम्रता का हर आचरण,
आत्मा की दूजा थी।

उसके पत्रों में प्रार्थना थी,
उसके मौन में वाणी थी,
उसके हर कर्म में ईश्वर था,
उसकी सांस में कहानी थी।

उसने कहा — “स्वच्छ रहो,
मन भी रखो निर्मल प्यारे,”
कूड़े से भी सीख लो तुम,
जीवन के अर्थ तुम्हारे।

वह बोला — “स्त्री का सम्मान,
सभ्यता का मापदंड है,”
जिस समाज में नारी हँसे,
वहीं सच्चा आनंद है।

सत्य की राह कठिन बहुत थी,
पर उसने हार न मानी,
हर असफलता में जीत खोजी,
हर चोट में प्रेम की कहानी।

दांडी के तट पर नमक बना,
जनमत का समंदर उठा,
साम्राज्य कांप उठा भीतर से,
जब सत्य ने डेरा डाला।

वह न कोई जादूगर था,
न कोई देव अवतारी,
पर उसकी विनम्र दृष्टि में,
दिखती थी सृष्टि सारी।

उसने सिखाया — “भविष्य वही,
जो आज हम गढ़ते हैं,”
“मनुष्य वही महान,
जो सबमें ईश्वर पढ़ते हैं।”

उसके हृदय का संगीत,
आज भी गूंजता भारत में,
हर बच्चे की सादगी में,
हर प्रार्थना की बात में।

वह चला गया, पर रुका नहीं,
वह मर गया, पर मिटा नहीं,
वह सत्य का अमर प्रतीक,
जो हर दिल से जुड़ा सही।

रघुपति राघव की धुन गूंजे,
जहाँ प्रेम का आलोक है,
गांधी आज भी जीवित हैं,
हर शांति के संकल्प में लोक है।

उसकी वाणी आज भी कहती —
“डरो मत, सच्चाई बनो,”
“दुनिया बदलेगी खुद-ब-खुद,
बस पहले इंसान बनो।”

वह जो था, वह जो रहेगा,
सत्य का सागर अनंत,
गांधी — केवल नाम नहीं,
मानवता का पवित्र व्रत।

हर युग में जब अंधकार बढ़ेगा,
वह फिर ज्योति बन आएगा,
कपड़े सादे, मन उजला,
दुनिया को फिर समझाएगा।

वह कहेगा — “हिंसा व्यर्थ है,”
“क्षमा में ही बल है सच्चा,”
और जब कोई बुराई उभरे,
सत्य उसे कर देगा कच्चा।

गांधी — वह इतिहास नहीं,
वह भविष्य की नींव है,
उसका हर शब्द, हर कदम,
मानवता की तीर्थभूमि है।

चलो उसी के पदचिन्हों पर,
जहाँ करुणा के फूल खिलें,
चलो वहीं जहाँ अहिंसा की,
धारा में मन शुद्ध मिलें।

गांधी का जीवन संदेश यही,
“जो खुद को जीते, वही महान,”
जिसने सबको अपनाया,
वही सच्चा हिन्दुस्तान।

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