Posts

मैं मृत्यु हूँ, यह कितना प्रासंगिक है इस बात से अधिक कि मैं जीवन हूँ।

हर ज़िम्मेदारियों से थकी-सी मैं लड़की

राख क्या रोएगी, राख तो रुलाएगी

राख क्या रोएगी, राख तो रुलाएगी(2)

राख क्या रोएगी, राख तो रुलाएगी

इख़्तिताम में भी सुकूँ है

कभी-कभी रिश्ता टूटना भी ज़रूरी होता है

बददुआ लगेगी तुझको मेरी...

तेरी रूह तक सज़ा पाएगी...

तुम क्या समझोगी… दर्द की सच्चाई...

तूफ़ान तो बाहर था...

कितना कुछ बदल जाता है...

उठो, समय तुम्हें पुकार रहा है...

उठो, यह युद्ध पुकारता है

आरम्भ है प्रचण्ड