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ज़िंदगी और न्याय का प्रश्न

जिंदगी और न्याय का सवाल

धर्म और मानवता ...

इसलिए धन्यवाद देना ही होगा—

एक आत्मा (अनन्त सत्य) और दूसरा मन (क्षणिक अहं)— आपस में वार्तालाप कर रहे...

यदि मेरे अंत से सब कुछ समाप्त हो सकता है...

अगर मुझे मार देने से सब कुछ समाप्त हो जाएगा

तुझे पा रहा हूँ, या तुझे खो रहा हूँ....

ज़ंजीर-ए-ग़ुलामी को चूर-चूर कर दें।

जिस दिन मिलूँगा, सूद समेत वापिस लूँगा...

तुम जानते हो?

अलविदा

आरज़ू – एक नज़्म

प्यार यानी इंतज़ार

सुभाषचंद्र बोस और महात्मा गांधी : विचारों का अंतर, सम्मान का सामंजस्य