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खलता तो बहुत कुछ है, पर उसका मुझे धोखा देना

खलिश तो बहुत है, उसका मुझे धोखा देना

दिल को सुकून था, वो भी जुदा हो गई, उम्मीद-ए-ज़िन्दगी मेरी ख़फा हो गई।

ले चलो न फिर वहीं बस तुम और मैं.

ले चलो न फिर वहीं, जहाँ ख़्वाब भी जागते हैं और ख़ामोशियाँ भी बातें करती हैं...

ले चलो न फिर वहीं, बस तुम और मैं...

नहीं मिलती है मुझे वफ़ाएँ, ढूँढ़ते-ढूँढ़ते कई जनम बीते...

नहीं मिलती मुझे वफ़ाएँ, तलाश में मेरी सदियाँ गुज़र गईं...

नहीं मिलती मुझे वफ़ाएँ....

मैं मृत्यु हूँ, यह कितना प्रासंगिक है इस बात से अधिक कि मैं जीवन हूँ।

हर ज़िम्मेदारियों से थकी-सी मैं लड़की

राख क्या रोएगी, राख तो रुलाएगी

राख क्या रोएगी, राख तो रुलाएगी(2)

राख क्या रोएगी, राख तो रुलाएगी

इख़्तिताम में भी सुकूँ है