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क्या ही मरूँगा मैं, कभी नहीं मर सकता मैं।

तू सोच, मैं लिखूँगा, तेरे लिए ही, हर लफ़्ज़ तेरे नाम का कर दूँगा।

तू सोच, मैं लिखूँगा – हर अल्फ़ाज़ को तेरे ख़्याल की ख़ुशबू दूँगा...

क्या ही मरूँगा मैं, कभी नहीं मर सकता मैं।

नज़्म – "मैं फिर भी लिखूँगा"

"मैं फिर भी लिखूँगा"

खलता तो बहुत कुछ है, पर उसका मुझे धोखा देना

खलिश तो बहुत है, उसका मुझे धोखा देना

दिल को सुकून था, वो भी जुदा हो गई, उम्मीद-ए-ज़िन्दगी मेरी ख़फा हो गई।

ले चलो न फिर वहीं बस तुम और मैं.

ले चलो न फिर वहीं, जहाँ ख़्वाब भी जागते हैं और ख़ामोशियाँ भी बातें करती हैं...

ले चलो न फिर वहीं, बस तुम और मैं...

नहीं मिलती है मुझे वफ़ाएँ, ढूँढ़ते-ढूँढ़ते कई जनम बीते...

नहीं मिलती मुझे वफ़ाएँ, तलाश में मेरी सदियाँ गुज़र गईं...

नहीं मिलती मुझे वफ़ाएँ....